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गाथा..७४-७५
लोकसामाव्याधिकार अथ धाराप्रये उपयुपरि राशावर्षछेदप्रमाणमाह --
वगादुपरिमनग्गे दुगुणा दुगुणा हवंति पद्धचिदी । धारातय मट्ठाणे तिगुणा तिगुणा परवाणे |७|| वर्गादुपरिमवर्गे द्विगुणा द्विगुणा भवन्ति अर्घकछेदाः ।
पारामा स्वस्थाने त्रिगुणाः त्रिगुणाः परस्थाने ॥७४।। वगा । दुपरिमवर्ग तिगुणा दिगुणा पसंख्शेवाः भवन्ति धारात्रये स्वस्थाने, विगुणास्त्रिगुणाः परस्थाने । इयं व्याप्तितिरूपवर्गाविधारात्रयेपि । द्विरूपवर्णधारायामसंडष्ठिः यमुशितोऽबसेवा ॥७॥
तोनों धाराओं में अपर ऊपर की राशिमें अधच्छेदोंका प्रमाण कहते हैं....
गाथा:-तीनों धाराओंके स्वस्थानमें वर्गसे ऊपरके बगंमें अर्धच्छेद दुगुने दुगुने और परस्थानमें तिगुने विगुने होते हैं ॥७४।।
विशेषार्ष :-जहाँ निजधारा की अपेक्षा होती है उसे स्वस्थान कहते हैं तथा जहाँ परधाराकी अपेक्षा होती है उसे परस्थान कहते हैं।
तीनों धाराओंके स्वस्थानमें वर्गसे ऊपर वाले वर्गमें अर्धच्छेद नियमसे दुगुने दुगुने होते हैं और परस्थानमें तिगुने लिगुने होते हैं । जैसे :--द्विरूपवगंधाराका प्रथम स्थान ४ है और इसके अर्घच्छेद २ है । इसके ऊपर दूसरा वर्गस्थान १६ है जिसके अधचच्छेद ४ हैं जो दो के दुगुने हैं। इसके ऊपर तीसरा स्थान २५६ है जिसके अर्धच्छेद ८ हैं जो ४ के दुगुने हैं। इसी प्रकार आगे आगे भी जानना चाहिए।
___ इसीप्रकार परस्थानापेक्षा - द्विरूपवगंधाराके प्रथम स्थान ४ के अर्थच्छेद २ है तथा द्विरूपघनधाराके दूसरे स्थान ६४ के अधच्छेद ६ हैं जो २ के तिगुने हैं। द्विरूपवर्गधारा के दूसरे स्थान १६ के अर्धच्छेद ४ हैं तथा द्विरूपधनधाराके तीसरे स्थान ४०९८ के अर्घच्छेद १२ है जो ४ के तिगुने हैं । इसी प्रकार परस्थानापेक्षा नीचे के स्थानसे ऊपर के स्थानके अच्छेद नियमसे तिगुने तिगुने होते हैं । यह नियम तीनों धाराओंमें जानना। अथ वगंशलाकादीनामाधिक्यादिभवनप्रकारमाह - .
वग्गसला रूवाहिया मपदे परसम सवग्गालालमेचं । दुगमादमछिदी तम्मेत्तदुगे गुणे रामी ॥७४।। वर्गशला रूपाधिका: स्वपदे परस्मिन् समाः स्ववर्गशलामत्रम् । द्विकमाहतमधच्छेदाः तन्मात्रद्विके गुणे राशिः १७५।।