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त्रिलोकसार
गाथा: ७३
युक्तासंख्यात प्रमाणरूप आवली ३ जघन्य असंख्यातासंख्यातरूप प्रतरावली ४. अदापल्य ५ सूच्यंगुल ६. प्रतरांगुल सागीका पनसूल अपम परीताल ९. जघन्य युक्तानन्त (अभव्य राशि जघन्य युक्तानन्त प्रमाण है ) १०. जघन्य अनंतानंत ११. सम्पूर्ण जीवराशि १२. सम्पूर्ण पुद्गलराशि १३. सम्पूर्णकालके समय १४. श्रेणी आकाश १५. प्रतराकाश १६. धर्माधर्म द्रव्यके अगुरु लघु गुरणके अविभागप्रतिच्छेद १७. एक जीवके अगुरुलघु गुणके अविभागप्रतिच्छेद १८. सूक्ष्मनिगोदियाके लम्धक्षर पर्याय मुतज्ञानके अविभागप्रतिच्छेद १९. असंयत तिर्यश्चके जघन्य क्षायिक सम्यक्त्व रूप जघन्य लब्धि के अविभाग प्रतिच्छेद और २०. केवलज्ञानके अविभागप्रतिच्छेद ।
अथ धारात्रये सर्वत्राविशेषेण वर्गशलाकादिप्राप्तौ तन्नियममाह
उप्पज्जदि जो रासी विरलणदिज्जक्कमेण तस्सेत्थ । बग्गसलद्धच्छेदा धारातिदए ण जायते ।।७३।।
उत्पद्यते यः राशि: विरलनदेयकमेण तस्यात्र । वर्गशलाघच्छेदा धारात्रितये न जायन्ते ।।७३।।
उपजवि । यत्र धाराया विरलनवेशामे गोत्पन्नो यो यो राशिरुत्पद्यते तस्य तस्य राशेवंगशलाका प्रपंच्छेवाच तव धारायां न जायन्ते । इयं व्याप्तितिरूपविधाराये। प्रसंशविरलमराशिः पल्यः १६ वेयराशिः १६ उत्पनराशिः १८ : तस्यायंच्छेदा: ६४ तस्य वगंशलाका ६ निरूपवर्षपारायो, जायन्ते ।।७।।
द्विरूपवगंधारा, द्विरूपधनधारा विरूपधनाधनधारा - इन तीन धाराओं में पाई जाने वाली राशियोंकी वगंशलाकाओं एवम् अधच्छेदोंके सम्बन्धमें विशेष नियम :
गापार्ष:-जो राशि विरलन और देय के विधानम जिस धारा में उत्पन्न होती है, उस धारामें उसकी वर्गशलाकाएं और अधच्छेद नहीं पाए जाने । यह नियम तीनों धाराओं में है ॥७३॥
विशेषार्म :-जिस धारामें विरलन देयक्रमसे जो राशि उत्पन्न होती है, उस राशिको . वर्गशलाका और अबच्छेद उसी धारामें नहीं प्राप्त हो सकते । जैसे :- मानलो, अङ्क संदृष्टिमें विरतन
राशि १६ है और देय राशि भी १६ है । अतः १६ का एक एक विरलन कर प्रत्येक अङ्क पर १६ देय देकर परस्पर गुणा करने से एकट्ठी (१५=} का प्रमाण प्राप्त हुआ। इस एकट्ठीके अच्छेद ६४ और वर्गशलाकाएं ६ हैं जो इस विरूपवगंधारामें नहीं मिलेंगी, किन्तु एकट्ठी मिलेगी। यह नियम तीनों धाराओं के लिए है।