SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापा : ११ लोवामामान्याधिकार HEATकाः, ततोऽमस्तस्थानानि गत्या प्रधछेवा: अल्पाम्, ततोऽमन्तस्थामानि गत्या प्रथममूल, तस्मिन्मेकवारं वागते जीवराशिल्पयते । प्रत्र पर्गालाकानीनामुपलक्षणेमोक्तस्वाबुसात्र शशावपि ते वगंशलाकाइयोऽगस्तव्याः, ततोऽमस्थानानि गरवा पुगलराशिकरपद्यते, ततोऽनन्तस्थानानि वा काल समयराशिवत्पद्यते, ततोऽनन्तस्पानानि गत्वा याकावामुत्पद्यते, तस्मिन्नेकवारं बगिसे प्रसरकाशमुस्पद्यते ॥ ६ ॥ ___गाया :-जगच्छेणी के घनमूल मे असंख्यात स्थान असंख्यातस्थान आगे जाकर तीनों जघन्य मनन्तों में से जघन्यपरीतानन्त की वर्गशलाकाए', अर्घच्छेद, प्रथम वर्गमूल, जघन्यपरीतानन्स, जघन्ययक्तानम्त. जघन्य अनन्तानन्त, जीव, पुदगल. काल, आकाशगगी और आकाशतर की उत्पत्ति होती है ।। ६१॥ विशेषार्थ :-जगच्ट्रगी के घनमूल से असंख्यात स्थान आगे जाकर जघन्य परीताऽनन्त की वर्गशलाका राशि उत्पन्न होती है। इससे असंख्यात स्थान आगे जाकर उसीकी अघच्छेद राशि उत्पन्न होती है। उससे असंख्यात स्थान आगे जाकर उसी जघन्यपरीतानन्त का प्रथम वर्गमूल प्राप्त होता है। इस प्रथम वर्गमूल का एक वरर वर्ग करने पर जघन्यपरीतानन्त राशि की उत्पत्ति होती है। अधन्य परीतानन्त से असंख्यात स्थान आगे जाकर जघन्य युक्तानन्त उत्पन्न होता है। अर्थात "विरलन देय कम से उत्पन्न होने वाली राशि विगलन राशि के अर्घच्छेद प्रमाण बर्ग स्थान आगे जाकर उत्पन्न होती है.' इस नियम के अनुसार यहाँ जघन्ययुक्तानन्न का प्रमागा लाने के लिये देय राशि जघन्यपरीतानन्त है. और बिरलन राशि भी जघन्यपरीतानन्त ही है। विरलन राशि के अधुच्छेद असंख्यात है अतः असंख्यातवर्ग स्थान आगे जाकर जघन्य युक्तानन्त का प्रमाण प्राप्त होता है । यहाँ पर भी पूक्ति प्रकार से वर्गशलाकादि का निपेष है। __इस जघन्ययुक्तानन्त का एक बार वर्ग करने पर जघन्य अनन्तानन्त की उत्पत्ति होती है। इससे अनन्त स्थान आगे जाकर जीव राशि की वर्गशलाकाएं प्राप्त होती है । उससे अनन्त स्थान आगे जाकर उसी के अर्धच्छेद और उमसे अनन्त स्थान आगे जाकर उसी जीव राशि का प्रथमवर्गमूल प्राप्त होता है । इस प्रथम वर्गमूल का एक वार वर्ग करने से जीवराशि के प्रमाण की नत्पत्ति होती है । जीवराधि से अनन्त स्थान आगे जाकर पुदगल राशि की वर्गशलाकाए उससे अनन्त स्थान आगे जाकर उसी के अच्छद और उमसे अनन्न स्थान आगे जाकर उसी के प्रथम वर्गमूल की उत्पत्ति होती है। इस प्रथममूल कारक बार वर्ग करने पर पुद्गलराशि का प्रमाण उत्पन्न होता है। गुदगलराशि के प्रमाण से अनन्त स्थान आगे जाकरः काल के समयों की वर्गशलाकाएं, उससे . भनन्त स्थान आगे जाकर उसी के अधच्छेद, और उसमे अनन्न स्थान आगे जाकर उसी के प्रथमवर्गमूल की उत्पत्ति होती है। इस प्रथम वर्गमूल का एक बार वर्ग करने पर काल के जितने रामय हैं उनका .. प्रमाण प्राप्त होता है। कालसमय प्रमाण से अनन्त स्थान आगे जाकर श्रेणीरूप आकाश की वर्गशलाकाएं, उमसे अनन्त स्थान आगे जाकर उसीके अधच्छेद और उससे अनन्त स्थान आगे जाकर उसी आकाश थेणी
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy