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________________ त्रिलोकसार गाथा : ६७ मेहं । द्विरूपवर्गधारा कथ्यते । चत्वारि ४ षोडश १६ द्विशतसहितषट्पञ्चाशत् २५६ वाडीपचसात्तीसा६५५३६ "बावालं उरणचवी छवि विहसरीयणउदी" ४२६४९६७२६६ "एकच घर सत्तयं च च यं सुवालससियसना । पुष्णं रगब परण पत्र एक छक्के की शुक्कं च ।।" १८४४६७४४०७३७०६५५१६९६ ॥ एकमुसलरराशि: पूर्वपूर्वस्य कृतिः ॥ ६६ ॥ १२. सात गाथाओं द्वारा द्विरूपवर्गधारा का कथन करते हैं : ६० गाथार्थ इसमें उत्तर उत्तर स्थान प्राप्त होते हैं। इस धारा का प्रथम स्थान ४ ६५५३६, बादाल (४२ = ) और एकडी प्राप्त होती हैं जो पूर्व -: पूर्व स्थानों का वर्ग करते हुए है । इसका वर्ग १६, फिर २५६, पूर्व का वर्ग है ।। ६६ ।। विशेषार्थ :- द्विरुपवर्ग धारा में २ का वर्ग ४ यह प्रथम स्थान है । १६ द्वितीय स्थान है । इसी प्रकार २५६ तीसरा ( पणडी पंचसया छत्तीसा ) ६५५३६ चौथा, (बादानं चउरसउदी छष्णनदी बित्तरीयछाउदी) ४२६४९६७९९६ ( बादाल ) पाँचवरं तथा । एफ्टु च वस्त्तयं च च य सुततियसत्ता । सुगं एव गाव पंच य, एक्के छक्क्कगो यक्कं च ।। ) १८४४६७४४०७३७०९५५१६१६ ( एकट्टो) छठा स्थान है इस प्रकार उत्तरोत्तर राशि पूर्व पूर्व राशि के कृति ( वर्ग ) स्वरूप होती है । तो संखठाणगमणे वग्गसलाम छेदपदमपदं । अवर परिचासंखं आवलि पदरावली य हवे ।। ६७ ।। ततः संख्यस्थानगमने वर्गशलाकार्यच्छेदप्रथमपदम् । अवरपरीतासंख्यं आवलिः प्रतरावली च भवेत् ॥ ६७ ॥ सो संठारण । ततः संख्यातस्थानामि गत्या वर्गशलाकाराशिरुत्पद्यते । ततः संख्पालस्थामानि मया रशिदस्पद्यते । ततः संख्यावस्थामानि पश्वा प्रथममूलमुत्पद्यते । तस्मिन्नेकवारं वर्णिते जघन्यपरीतासंख्या राशिरत्पद्यते । ततः "उप्पज्जवि जो रासो विरलियविलक्क मेरा" इस्याविना वर्णशलाकानिषिद्धत्वात् ततः संख्यात स्थानानि गत्या प्रावलिरेवोत्पद्यते । तत्संख्यास्थानमानं कमितिचेत् । वेयराशे परि बिलियर्धस्वमात्राणि वर्गस्थानानि गत्वा विवक्षितराशियत्पाते इति ज्ञातव्यं । तस्यामावस्यामेकवारं वनितायां प्रतरावलिभबेत् ॥ ६७ ॥ गावार्थ:- इसी प्रकार पूर्व पूर्व का वर्ग करते हुए संख्यात स्थान आगे जाकर जधन्यपरीता संख्यात की वर्गशलाका, अर्थच्छेद, प्रथमवर्गमूल जधन्यपरीता संख्यात की राशि, आवली और प्रतरावली की प्राप्ति होती है ।। ६७ ।। विशेषार्थ :- इसी प्रकार पूर्व पूर्व का वर्ग करते हुए संख्यात स्थान आगे जाकर (जघन्य परीक्षासंख्यातको) वर्गशलाका राशि उत्पन्न होती है। इससे संख्यात स्थान जागे जाकर उसी की अच्छेद 1
SR No.090512
Book TitleTriloksar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, Ratanchand Jain, Chetanprakash Patni
PublisherLadmal Jain
Publication Year
Total Pages829
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size19 MB
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