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गाथा : ६५-६६
लोकसामाग्याधिकार ६, १०.................... ३५, ३६, ३७, ३८, ३९ और ४०। केवलज्ञान का प्रमाण ६५५३६ है और आसन्नषन ६४००० है अतः इसका प्रथम घनमूल ४० है जो धनमातृकधारा का अन्तिम स्थान है। इस धारा में केवलज्ञान का द्वितीय वर्गमूल तो पाया जाता है क्योंकि उसका घन केवलज्ञान के प्रथमवर्गमूल से गुणित द्वितीयवर्गमूल होता है जो केवलज्ञान से कम है किन्तु केवलज्ञान का प्रथमवर्गमूल नहीं पाया जाता क्योंकि इसका धन केवलज्ञान से अधिक हो जाता है । अयाधनमातृकधारोच्यते
सं स्वसहिदमादी केवलमवसाणमघणमाउस्म ।
आसपणषणपदणं केवलणाणं हवे ठार्ण ।। ६५ ।। तत् रूपसहितं आदिः केवलमबसानमधनमातृकायाः ।
आसन्नधनपदोनं केवलशानं भवेत् स्थानम् ॥६५॥ तं । अंकसंधी घममातृकामा मत: ४० स: रूपसहितश्चेत् ४१ प्रधनमातृकाया पारित मस्या प्रवासानं केवलमानमेव ६५=प्रस्था: स्पानं पुन: केवलमानस्य ६५- प्रासमधन १४००० मसो ४०० केवलज्ञानमेव ६५४६६ भवेत् ॥ ६ ॥ ११. अघनमातकधारा का स्वरूप :
गापा:-धनमातृक धारा के अन्तिम स्थान में एक अंक मिलाने से अधनधारा का प्रथम स्थान होता है, यहां से प्रारम्भ कर केवलज्ञान पर्यन्त समस्त स्थान अपनधारा रूप ही हैं । इस धारा के स्थान आसन्नघनमूल रहित केवलशान प्रमाण होते हैं ॥ ६५ ॥
विवोषार्ष:- जिन संख्याओं का धन करने पर घन रूप संख्या का प्रमाण केवलज्ञान से आगे निकल जाता है, वे सर्व संध्याएं इस अघनमातृक धारा में ग्रहण की गई हैं । धनमातृफ धारा के प्रतिम स्थान । ४. ) में एक अंक मिलाने पर ( ४ ) इस धारा का प्रथम स्थान बनता है । इस प्रथम स्थान से लेकर केवलशान पर्यन्त सभी संख्याएं इस धारा के स्थान हैं। जैसे:-४१,४२, ४३, ४५, ४५, ४६, ४७, ४८..................६५५३४, ६५५३.५ और ६५५३६ ।
केवलज्ञान स्वरूप ६५५३६ में से आसन्नघन ६४००० का प्रथमघनमूल (४० ) घटाने पर इस धारा के ६५४९६ स्थान बनते हैं। इस धारा में अघन्य संख्यात से लेकर जघन्य अनन्तानन्त तक का कोई भी स्थान नहीं है। उत्कट अनस्तानन्त है, किन्तु मध्यम अनन्तानन्त भगनीय है। अम विरूपवर्गधारां गाथासप्तकेनाह :
बेरूत्रबग्गधारा चउ सोलसपेसदसहियछप्पण्णं । पणट्टी बादालं एकई पुष्वपुबकदी ॥६६ ॥ द्विरूपवर्गधारा चत्वारः षोडश द्विशतसहितषट्पञ्चाशत् । पगट्ठी द्वाचस्वारिंशत् एकाष्टी पूर्वपूर्वकृतिः ॥ ६६||