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स्थितिका
पं० पद्मसुन्दरने अपने प्रभ्थोंमें रचनाकालका अंकन किया है । अतः इनके स्थितिकालके सम्बन्धमें जानकारी प्राप्त करना कठिन नहीं है । प्रशस्तिके अनुसार भविष्यदत्तचरितका रचनाकाल कार्तिक शुक्ला पंचमी वि० सं० १६१४ और रायमल्लाभ्युदयका रचनाकाल ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी वि० सं० १६१५ है । अतएव पं० पद्मसुन्दरका समय वि० सं० की १७वीं शती निश्चित है ।
चना
पं० पद्मसुन्दरकी दो ही रचनाएं उपलब्ध हैं-- भविष्यदत्तवरित और राथमल्लाभ्युदयमहाकाव्य । भविष्यदत्तचरितमें पुण्यपुरुष भविष्यदत्तकी कथा अंकित है। श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीको सूचनाके अनुसार फाल्गुन शुक्ला सप्तमी वि० सं० १६१५ की लिखित भविष्यदत्तचरितकी अपूर्ण प्रति बंबईके ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवनमें विद्यमान है । भविष्यदत्तकी कथा पाँच सर्गों या परिच्छेदों में विभक्त है ।
रायमल्लाभ्युदयमहाकाव्य में २५ सगँ हैं । इसमें २४ तीर्थंकरोंके जीवनवृत्त गुम्फित किये गये हैं । ग्रंथका प्रारंभिक अंश और अन्त्यप्रशस्ति इतिहास की दृष्टिसे उपयोगी है। ग्रंथकै अन्तमें पुष्पिकावाक्य निम्नप्रकार लिखा गया है
" इति श्रीपरमाप्तपुरुषचतुर्विंशतितीर्थंकरगुणानुवादचरिते पं० श्रीपद्ममेरुविनेये पं० पद्मसुन्दरविरचिते वर्द्धमानजिनचरितमंगलकीर्त्तनं नाम पंचविशः सर्गः ।"
पं० जिनदास
पं० जिनद्रास आयुर्वेदके निष्णात पंडित थे । इनके पूर्वज हरिपतिको पद्यावतीदेवीका वर प्राप्त था । ये पेरीजशाह द्वारा सम्मानित थे । इन्हींके वंश में पद्यनामक श्रेष्ठ हुए, जिन्होंने याचकोंको बहुत-सा दान दिया । पद्म अत्यन्त प्रभावशाली थे । अनेक सेठ, सामन्त और राजा इनका सम्मान करते थे । पद्मका पुत्र वैद्यराज बिझ था। बिझने शाह नसोरसे उत्कर्षं प्राप्त किया था। इनके दूसरे पुत्रका नाम सुहुजन था, जो विवेकी और वादिरूपी मृगराजोंके लिये सिंहके समान था । यह भट्टारक जिनचन्द्रके पदपर प्रतिष्ठित हुआ और इसका नाम प्रभाचन्द्र रखा गया। इसने राजाओं जैसो विभूतिका परित्याग किया था। उक्त बिझका पुत्र घमंदास हुआ, जिसे महमूहशाहने बहुमान्यता प्रदान की थी। यह वैद्यशिरोमणि और यशस्वी था। इनकी धर्मपत्नीका नाम
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ८३