SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जम्बूस्वामी चरित - इस चरितकाव्य में पुण्यपुरुष जम्बूस्वामीकी कथा वर्णित है । १३ सर्ग हैं और २४०० पद्य । कथामस्ववर्णन में आगरा का बहुत ही सुन्दर वर्णन आया है । इस ग्रन्थको रचना आगरामं ही सम्पन्न हुई है । इस काव्यको कथावस्तुको दो भागोंमें विभक्त कर सकते है - पूर्वभव और वर्तमान जन्म । पूर्वभवावली में भावदेव और भवदेवके जोवनवृत्तोंका अंकन है । कविने विद्यच्चरचोरका आख्यान भी वर्णित किया है । आरभके चार परिच्छेदो में वर्णित सभी आख्यान पूर्वभवावलीसे सम्बन्धित हैं । पञ्चम परिच्छेद से जम्बूस्वामीका इतिवृत्त आरंभ होता है । जम्बूकुमारके पिताका नाम अर्हदास था । जम्बूकुमार बड़े ही पराक्रमशाली और वीर थे। इन्होंने एक मदोन्मत्त हाथीको वश किया, जिससे प्रभावित होकर चार श्रीमन्त सेठोंने अपनी कन्याओं का विवाह उनके साथ कर दिया। जम्बूकुमार एक मुनिका उपदेश सुन विरक्त हो गये और वे दीक्षा लेनेका विचार करने लगे। चारों स्त्रियोंने अपने मधुर हाव-भावों द्वारा कुमारको विषयभोगोंके लिए आकर्षित करना चाहा पर वे मेरुके समान अडिग रहे । नवविवाहिताओंका कुमारके साथ नानाप्रकारसे रोचक वार्तालाप हुआ और उन्होंने कुमारको अपने वशमें करने के लिए पूरा प्रयास किया पर अन्त में वे कुमारको अपने रागमें आबद्ध न कर सकीं। जम्बूकुमारने जिनदीक्षा ग्रहणकर तपश्चरण किया तथा केवलज्ञान और निर्वाण पाया । 1 कविने कथावस्तुको सरस बनानेका पूर्ण प्रयास किया है। युद्धक्षेत्रका वर्धन करता हुआ कवि वोरता और रौद्रताका मूर्तरूप ही उपस्थित कर देता है"प्रस्फुरत्स्फुरदस्रौघा भटाः सदशिताः परे । औत्पातिका इवानीला सोल्का मेघाः समुत्विताः ॥ करवा कराला करे कृत्वाऽभयोश्वरः । पश्यन् मुखरसं तस्मिन् स्वसौन्दयं परिजशिवान् ॥ कराएं विभूतं खक्ष्मं तुलयत्कोऽप्यभाद्भटः । प्रभिमिसुरिवानेन स्वामीसत्कारमोरवन् ॥" जम्बूस्वामीचरित, अ१०४-१०६ कविने इस संदर्भ में दुष्पविम्बी योजना को है। समरणें मॉस्चर अस्त्र धारण किये हुए बोटा इस प्रकारके दिखलाई पड़ते हैं जिसप्रकार उत्पातकालमें नीले मेघ उकासे परिपूर्ण परिलक्षित होते है । यह निमित्तकामि है कि उत्पातकालमें टूटकर पढ़नेवाली उल्काएँ बनियमित रूपसे झटित यति करती हैं और वे नीले मेषोंके साथ मिलकर एक नया रूप प्रस्तुत करती हैं । कविने इसी बिम्बको अपने मान्नसमें ग्रहणकर दीप्तिमान अस्त्रोंसे परिपूर्ण योद्धाओंकी आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ७९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy