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स्पष्ट है कि कविने समस्यन्त कठोर पदोंको छोड़ सरल और लघु असमस्यन्त पदोंका चयन इस काव्यमें किया है।
४. भानसूर्योदय नाटक-इस नाटकके पात्र भावात्मक हैं। सूत्रधार और नटीके बीच सम्पन्न हुए वार्तालाप काटा गया है कि सागमत' मान्स है ! किसी कर्मके प्रभावसे व्यक्ति भ्रान्त होते हैं और पुनः शान्ति प्राप्त करते हैं। चैतन्य-आत्माकी सुमति और कुमति नामक दो पस्नियोंसे पृथक्-पृथक् दो कुल उत्पन्न हुए हैं। सुमतिके पुत्र विवेक, प्रबोध, सन्तोष और शील हैं तथा कमतिके मोह. मान, मार, क्रोध और लोभ हैं। कुमतिको प्रेरणासे आत्माने मोह और काम नामक पुत्रोंको राज्य दे दिया। विवेकको यह अच्छा न लगा। अतएव वह ध्यान आदिको सहायतासे मोह और कामको वश करता है तथा मक्तिलाम करता है। __... पवनदत्त इसमें १०१ पद्य हैं ! यह मेघदूतको शैलीमें लिखा गया एक स्वतंत्र काव्य है । इसमें बताया है कि उज्जयिनी में विजयनरेश नामक राजा रहता था। उसकी पत्नीका नाम तारा था । अपनी रानीसे बहुत प्रेम करता था । एक दिन अशनिवेग नामका एक विद्याधर ताराको हरकर ले गया । रानोके वियोगसे राजा दुःखी रहने लगा। विरहावस्था में वह पवनको दूस बनाकर रानीके पास भेजनेका निश्चय करता है। अपनी विरहावस्थाका चित्रण करनेके अनन्तर पबनको वह मार्ग बतलाता है । इस सन्दर्भ में वन, मदी, पर्वत, नगर और नगरोंमें निवास करनेवाली स्त्रियों तथा उनकी विलासमयी चेष्टाओंका बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। पवन राजाका सन्देश लेकर अशनिवेगके नगरमें पहुंचता और अशनिवेगके महल में जाकर ताराको उसके प्रियका सन्देश सुनाता है 1 तदनन्तर अशनिवेगकी सभामें जाकर उसे ताराके बापस दे देनेका परामर्श देता है। अशनिवेग विजयनरेशको युद्धको धमकी देता; पर उसको माता उसे युद्ध न करनेका परामर्श देती है। और ताराको पवनके हाथ सौंप देती है । पवन ताराको लेकर वापस आ जाता है ।
यह काश्य मन्दाक्रान्ता छन्दोंमें लिखा गया है। भाषा सरल, सरस और प्रसादगुणमय है। ऋतुओंका चित्रण काव्यात्मक शैलीमें किया गया है। ताराके शीलकी अभिव्यञ्जना बहुत ही सुन्दर हुई है ।
६. पाण्डवपुराण-इसमें पाण्डवोंका वृत्तान्त वर्णित है। ७. यशोधरचरित-महाराज यशोधरको लोकप्रिय कथा इसमें दी है। ८. होलिकाचरित-एक सरस चरितकाव्य है ।
माघार्यतुरुप काम्पकार एवं लेखक : ७३