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प्रभाचन्द्रदेवाः तत्पट्टे भ० श्रीवादिचन्द्रः तेषां मध्ये उपाध्याय धर्मकीर्ति स्वकर्मक्षयार्थ लेखि
वि० सं० १६४० (६० सन् १५८३ ) में वाल्मीकिनगरमें पार्श्वपुराण की रचना; वि० ० सं० १६५१ ( ई० सन् १५९४ ) में श्रीपाल - आख्यान एवं वि० सं० १६५७ ( ई० सन् १६००) में अंकलेश्वर में यशोधरचरितका प्रणयन कवि द्वारा हुआ है। वादिचन्द्र ने ज्ञानसूर्योदयनाटककी रचना माघ शुक्ला अष्टमी वि० सं० १६४८ ( ई० सन् १५९१ ) में मधूकनगर गुजरात में समाप्त की थी । "
कविकी एक अन्य रचना पवनदूतनामक खण्डकाव्य भी उपलब्ध है । पर इस काव्य में कविने रचनाकालका निर्देश नहीं किया है। वादिचन्द्रका समय वि० सं० १६३७ - १६६४ संभव है ।
रचनाएँ
कवि वादिचन्द्र खण्डकाव्य, नाटक, पुराण एवं गीतिकाव्योंका प्रणयन किया है । इनके द्वारा विति निम्नलिखित जान है :---
१. पार्श्वपुराण - इस पौराणिक ग्रन्थ में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथका चरित वर्णित है । इसका परिमाण १५८० अनुष्टुप् श्लोक है ।
२. श्रीपाल - आख्यान - गुजरातीमिश्रित हिन्दी में यह गीतिकाव्य लिखा गया है । भाषाका नमूना निम्न प्रकार है
प्रगट पाट त अनुक्रमे मानु ज्ञानभूषण ज्ञानवंतजी । तस पद कमल भ्रमर अविचल जस प्रभाचन्द्र जयवंतजी | जगमोहन पाटे उदयो वादीचन्द्र गुणालजी । नवरसगीते जेणे गायाँ चक्रवति श्रीपालजी ॥ ३. सुभगसुलोचनाचरित - यह कथात्मक काव्य है। इसमें ९ परिच्छेद | कविने अन्तिम प्रशस्तिमें उक्त काव्यकी विशेषतापर प्रकाश डालते हुए लिखा है
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"विहाय पद- काठिन्यं
सुगर्भवंचनोत्करैः । चकार चरितं साध्वा वादिचन्द्रोऽल्पमेधसा ||"
१. भट्टारक-सम्प्रदाय, शोलापूर, लेखांक ४९१ ।
२. शून्यादे रसाब्ज्ञांके वर्षे पक्षं समुज्ज्वले |
कार्तिके मासि पंचम्यां वाल्मीके नगरे मुदा । पादपुराण लेखांक -४९२ ।
३ "संवत सोल एकावनावर्षे कीधो ये परबंघजी ।" - श्रीपाल - आख्यान लेखांक ४९४ |
४. "सप्तपंच राजांक वकारि सुशास्त्रकम् " -- यशोधरचरित, लेखांक ४९५ । ५. "वसुर्वेद रसाब्जां के वर्पे माघे सिताष्टमी दिवसे"-- ज्ञानसूर्योदयनाटक, लेखांक ४९३ ।
७२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा