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दूसरी बात यह है कि रत्नकरण्डके टीकाकार प्रभाचन्द्र ने रामचन्द्रको कथाएँ इस टीका में ग्रहण की हैं तो रामचन्द्र प्रभाचन्द्रसे भी पूर्व सिद्ध होंगे । हमारा अनुमान है कि पुण्यास्त्रवकथाकोशके रचयिता केशवनन्दिके शिष्य रामचन्द्र आशाधरके समकालीन या उनसे कुछ पूर्ववर्ती हैं ।
रचनाएं
रामचन्द्र मुमुक्षुकी पुण्यास व कथा कोश के साथ शान्तिनाथचरित कृति भी बतलायी जाती है । पद्मनन्दिके शिष्य रामचन्द्र द्वारा रचित धर्मपरीक्षा ग्रन्थ भी संभव है | पुण्यात्रव ४५०० श्लोकोंमें रचित कथा-ग्रन्थ है । इस ग्रन्थका सारांश कविने ५७ पद्योंमें निबद्ध किया है । आठ कथायें पूजाके फलसे; नी कथाएँ पंचनमस्कारके फलसे; ७ कथायें श्रुतोपयोग के फलसे; ७ कथाएं शीलके फलसे सम्बद्ध; ७ कथाएँ उपवासके फलसे और १५ कथाएँ दानके फल से सम्बद्ध हैं। शैली वैदर्भी है, जिसे पूजा, दर्शन, स्वाध्याय आदिके फलोंको कथाओं के माध्यम द्वारा व्यक्त किया गया है ।
वादिचन्द्र
बलात्कारगणकी सूरत- शाखाके भट्टारकोंमें कवि वादिचन्द्रका नाम उपलब्ध होता है। इनके गुरु प्रभाचन्द्र और दादागुरु ज्ञानभूषण थे। इनकी जाति हुंबड़ बतायो गई है। सूरत शाखा के भट्टारकपट्टपर पद्मनन्द देवेन्द्र कीति, विद्यानन्दि, मल्लिभूषण, लक्ष्मीचन्द्र, वीरचन्द्र, ज्ञानभूषण, प्रभाचन्द्र और वादिचन्द्रके नाम उपलब्ध होते हैं । वादिचन्द्र के पट्टपर महीचन्द्र आसीन हुए थे । वादिचन्द्र काव्यप्रतिभा की दृष्टिसे अन्य भट्टारकका अपेक्षा आगे हैं । उनकी भाषा प्रौढ़ है और उसमें भावगांभीर्य पाया जाता है। ग्रंथरचना करने के साथ उन्होंने मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा भी करवाई थी । धर्म और साहित्य के प्रचार में उनका बहुमूल्य योग रहा। मूलसंघ सरस्वतीगच्छ और बलात्कारगणके विद्वानोंमें इनकी गणना की गई है ।
स्थितिकाल
भट्टारक वादिचन्द्र सूरि के समय में वि० सं० १६३७ ( ई० सन् १५८०) में उपाध्याय धर्मकीत्तिने कोदादा में श्रीपालचरितकी प्रति लिखी है । बताया है
"संवत् १६३७ वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे अदेह श्रीकोदादाशुभ स्थाने श्री शीतलनाथचैत्यालये श्रीमूलसंघे भ० श्रीज्ञानभूषणदेवाः तत्पठ्ठे भ० श्री आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक ७२