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________________ ये निरन्तर भव्यजीवरूप कमलोंके प्रफुल्लित करने में सूर्य के समान तत्पर थे । ये देवोंके द्वारा वन्दनीय थे । उनके शिष्य मुनिसमूह द्वारा वन्दनीय श्रीनन्दि सूरि हुए । उनकी कीत्ति चन्द्रमा के समान थी। वे ७२ कलाओं में प्रवीण थे । उन्होंने अपने ज्ञानके तेजसे सभी दिशाओंको आलोकित कर दिया था । श्रीनन्दि चार्वाक, बौद्ध, जैन, सांख्य, शैव आदि दर्शनोंके विद्वान् थे । उपर्युक्त प्रशस्ति से यह स्पष्ट है कि केशवनन्दि अच्छे विद्वान् थे और उन्हींके शिष्य रामचन्द्र मुमुक्षु रामचंद्र महायशस्वी वादीभसिंह महामुनि पद्मनन्दि से व्याकरण शास्त्रका अध्ययन किया था। कुछ विद्वानोंका अभिमत हैं कि प्रशस्तिके अंतिम छः पद्य पीछेसे जोड़े गये हैं । ये प्रशस्ति पद्य ग्रंथका मूल भाग प्रतीत नहीं होते । यह संभव है कि इस प्रशस्ति में उल्लिखित पद्मनन्दि रामचन्द्र के व्याकरणगुरु रहे हों । प्रशस्ति के आधारपर पद्मनन्दि, माधवनन्दि, वसुनन्दि, मोली या मौनी और श्रीनन्द आचार्य हुए हैं। सिद्धान्तशास्त्रके ज्ञाता वसुनन्दि मूलाचारटीकाके रचयिता वसुनन्दि यदि हैं तो इनका समय १२३४ ई० के पूर्व होना चाहिए । रामचन्द्र मुमुक्ष संस्कृत भाषा के प्रौढ़ गद्यकार हैं। उन्होंने संस्कृत और कन्नड़ दोनों भाषाओंकी रचनाओंका पुण्यास्त्रवकथाकोशके रचनेमें उपयोग किया है । कन्नड़ भाषा के अभिज्ञ होनेसे उन्हें दक्षिणका निवासी या प्रवासी माना जा सकता है । रामचन्द्र के इस कथाकोशसे यह स्पष्ट होता है कि रचfraाकी कृति में व्याकरण शैथिल्य है । उनकी शैली और मुहावरोंसे भी यहाँ सिद्ध होता है । स्थितिकाल रामचन्द्र मुमुक्षुने अपने लेखनकाल के सम्बन्धमें कुछ भी उल्लेख नहीं किया है । इनके स्थितिकालका निर्णय ग्रन्थोंके उपयोग के आधारपर ही किया जा सकता है । इन्होंने हरिवंशपुराण महापुराण और वृहद्कयाकांशका उपयोग किया है । हरिवंशपुराणका समय ई० सन् ७८३ महापुराणका समय ईं० सन् ८९७ और वृहदशाकोशका ई० सन् ९३१-३२ है | अतएव रामचन्द्रका समय ई० सन् की १०वीं शताब्दी के पश्चात् है । रामचन्दकी कृति के आधार से कन्नड़ कवि नागराजने ई० सन् १३३१ में कन्नड़ की रचना की है। अतएव १३३१ के पूर्व इनका समय संभाव्य है । यदि प्रशस्ति में उल्लिखित यमुर्नान्द मूलाचारकी टीका के रचयिता सिद्ध हो जायें, तो रामचन्द्रका समय १३वीं शती के मध्यका भाग होगा । ७० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा 1
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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