________________
देवस्तुतजिन (नाग) देवविरचिते स्मरपराजये संस्कृतबन्धे श्रुतावस्थानामप्रथमपरिच्छेदः" |
ठाकुर माइन्ददेव और जिनदेवको किस प्रकार इस ग्रन्थका कर्ता बतलाया गया है । श्री जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्तासे प्रकाशित और श्री पं० गजाधरलालजी न्यायतीर्थं द्वारा अनूदित 'मकरध्वजपराजय के परिच्छेद के अन्तमें भी मदनपराजय के कर्ताको ठाकुर माइन्ददेवसुत जिनदेव सूचित किया गया है । यों तो मदनपराजयके प्रारम्भमें ही नागदेवने अपने पिताका नाम भल्लुगित बताया है। नागदेव से पूर्व छठो पीढ़ी में हुए हरदेवने 'मदनपराजय' को अपभ्रंशमें लिखा है । श्री डा० हीरालालजीने अपने एक निबन्ध में लिखा है"इस काव्यका ठाकुर मयन्ददेव के पुत्र जिनदेवने अपने स्मरपराजयमें परिवर्द्धन किया, ऐसा प्रतीत होता है"", पर जबतक 'मदनपराजय' और 'स्मरपराजय' ये दोनों रचनाएँ स्वतन्त्र रूपसे उपलब्ध नहीं होती है तब तक यह केवल अनुमानमात्र हैं । हमारा अनुमान है कि नागदेवने 'मदनपराजय' को ही स्मरपराजय, मारपराजय और जिनस्तोत्र के नामसे अभिहित किया है। अतएव नागदेवका ही अपरनाम जिनदेव होना चाहिए ।
रचना
नागदेव द्वारा रचित मदनपराजय प्राप्त होता है। सम्यक्त्वकौमुदी और मदनपराजयमें भाषा साम्य, शैलीसाम्य और ग्रन्थोद्धृत पद्यसाम्य होनेसे सम्यक्त्वकौमुदीके रचयिता भी नागदेव अनुमानित किये जा सकते हैं, पर यथार्थतः नागदेवका एक ही ग्रन्थ मदनपराजय उपलब्ध है ।
'मदनपराजय' में रूपकशैली द्वारा मदनके
।
पराजित होनेकी कथा वर्णित है । यह कथा रूपकशैली में लिखी गई है। बताया है कि भवनामक नगर में मकरध्वज नामक राजा राज्य करता था एक दिन उसको सभामें शल्या, गारव, कर्मदण्ड, दोष और आश्रव आदि सभी योद्धा उपस्थित थे। प्रधान सचिव मोह भी वर्त्तमान था । मकरध्वजने वार्तालापके प्रसंग में मोहसे किसी अपूर्वं समाचार सुनाने की बात कही । उत्तरमें उसने मकरध्वजसे कहा- राजन् आज एक ही नया समाचार है और वह यह है कि जिनराजका बहुत ही शीघ्र मुक्ति-कन्याके साथ विवाह होने जा रहा है। मकरध्वजने अबतक जिनराजका नाम नहीं सुना था और मुक्तिकन्यासे भी उसका कोई परिचय नहीं था । वह जिनराज और मुक्तिकन्याका परिचय प्राप्तकर आश्चर्यचकित हुआ । १. नागरी प्रचारिणी पत्रिका वर्ष ५० अंक ३, ४ १० १२१ ।
६४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा