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स्थितिफाल
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नागदेवते 'मदनपराजय' की रचना कब की इसका निर्देश कहीं नहीं मिलता है | 'मदनपराजय' पर आशाधरका प्रभाव दिखलाई पड़ता है तथा ग्रन्थकर्माने स्वयं इस बात को स्वीकार किया है कि हरदेवने अपभ्रंश में 'मदनपराजय' ग्रंथ लिखा है उसी ग्रन्थ आधारपर संस्कृत भाषा में 'मदनपराजय' लिखा गया है | अतः हरदेवके पश्चात् ही नागदेवका समय होना चाहिए। हरदेवने भी 'मयणपराज उ' का रचनाकाल अंकित नहीं किया है। इस ग्रन्थकी आमेर भंडारकी पाण्डुलिपि वि० सं० १५७६ की लिखी हुई है । अतः हरदेवका समय इसके पूर्व सुनिश्चित है। साहित्य, भाषा एवं प्रतिपादन शैलीको दृष्टिसे 'भयणपराजउ' का रचनाकाल १४ वीं शती प्रतीत होता है । अतएव नागदेवका समय १४वीं शतीके लगभग होना चाहिए। यदि आशाधर के प्रभावको नागदेवपर स्वीकार किया जाय, तो इनका सम्म १४ सिटक है । यतः आशाधरने 'अनगारधर्मामृत' की टीका वि० सं० १३०० में समाप्त की थी । इस दृष्टिसे नागदेवका समय वि० को १४ वीं शती माना जा सकता है । नागदेवने अपने ग्रन्थ में अनेक ग्रन्थोंके उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। इन उद्धरणों के अध्ययन से भी नागदेवका समय १४ वीं शती आता है । 'मदनपराजय' की जो पाण्डुलिपियाँ उपलब्ध हैं उनमें एक प्रति भट्टारक महेन्द्रकी र्तिके शास्त्र भण्डार आमेर की है । यह प्रति वि० सं० १५७३ में सूर्यसेन नरेशके राज्यकाल में लिखी गई है | इस ग्रन्थकी प्रशस्ति में बताया है कि मूलसंघ कुन्दकुन्दाचार्यके आम्नाय तथा सरस्वतीगच्छ में जिनेन्द्रसूरिके पट्टपर प्रभाचन्द्र भट्टारक हुए, जिनके आम्नायवती नरसिंह के सुपुत्र होलाने यह प्रति लिखकर किसी ती पात्रके लिये समर्पित की। नरसिंह खण्डेलवास के निवासी पाम्पत्य कुलके थे । इनकी पत्नीका नाम मणिका था। दोनोंके होला नामक पुत्र था, जिसकी पत्नीका नाम वाणभू था | होलाके बाला और पर्वत नामक दो भाई थे और इस प्रतिको लिखाने में तथा व्रती के लिए समर्पण करने में इन दोनों भाइयोंका सहयोग था । इस लेख से यह भी प्रतीत होता है कि बाला की पत्नीका नाम धान्या था । और इसके कुम्भ और बाहू नामक दो पुत्र भी थे ।
इस पाण्डुलिपिके अवलोकनसे इतना स्पष्ट है कि नागदेवका समय वि० सं० १५७३ के पूर्व है । अतएव संक्षेपमें ग्रन्थके अध्ययनसे नागदेवका समय आशाधरके समकालीन या उनसे कुछ ही बाद होना चाहिए । नागदेव बड़े ही प्रतिभाशाली और सफल काव्यलेखक थे ।
'मदनपराजय' के पुष्पिका-वाक्यों में लिखा मिलता है - इति " ठाकुरमाइन्दआचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ६३
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