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हम जानते हैं, कोई भी इतना बड़ा और इतने अधिक अर्थोको बतलानेवाला नहीं है। इसमें एक-एक शब्दको लीजिये -- जहाँ अमर में इसके चार व मेदिनी में दश अर्थ बतलाये गये हैं, वहाँ इसमें १२ अर्थ बतलाये गये हैं, यहो इस कोशको विशेषता है ।"
नागदेव
नामदेव संस्कृत के अच्छे कवि और गद्यकार हैं। इन्होंने 'मदनपराजय' ग्रन्थ के आरम्भ में अपना परिचय दिया है। बताया है कि पृथ्वी पर पवित्र रघुकुलरूपी कमलको विकसित करनेके लिये सूर्यके समान चंगदेव हुआ । चंगदेव कल्पवृक्षके समान याचकोंके मनोरथको पूर्ण करनेवाला था । इसका पुत्र हरिदेव हुआ । हरिदेव दुर्जन कवि-हाथियोंके लिये सिंहके समान था । हरिदेवका पुत्र नागदेव हुआ, जिसकी प्रसिद्धि इस भूतलपर महान् वैद्यराजके रूप में थी ।
नागदेव हेम और राम नामक दो पुत्र हुए। ये दोनों भाई भी अच्छे देश थे । रामके प्रियंकर नामक एक पुत्र हुआ, जो अर्थियोंके लिये बड़ा प्रिय था । प्रियंकर के भी श्री मल्लुमित् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। श्री मल्लुगित् जिनेन्द्र भगवान के चरणकमलके प्रति उन्मत्त भ्रमरके समान अनुरागी था और चिकित्साशास्त्रसमुद्र में पारंगत था ।
मल्लुगित्का पुत्र में नागदेव हूँ। मैं अल्पज्ञ हूँ । छन्द, अलंकार, काव्य और व्याकरणशास्त्रका भी मुझे परिचय नहीं है । "
इस प्रशस्तिसे स्पष्ट है कि नागदेव सारस्वत कुलमें उत्पन्न हुआ था और उसके परिवारके सभी व्यक्ति चिकित्साशास्त्र या अन्य किसी शास्त्र से परिचित थे ।
यः शुद्धरामकुलपद्मविकासनार्को
जातोऽथिनां सुरतरुर्भुखि बङ्गदेवः । तनन्दनो हरिरसत्कविनागसिंहः तस्माद्भिषजनपतिर्भुवि तज्जावुभौ सुभिषजाविह हेमरामी
रामात्प्रियंकर इति प्रियदोऽथिनां यः ।
तज्जश्चिकित्सितमहाम्बु धिपारमाप्त :
श्री मल्लुगिज्जिनपदाम्बुजमत्तभृङ्गः तज्जोऽहं नागदेवाख्यः स्तोकशानंन
नागदेवः ॥ २ ।।
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संयुतः । छन्दोऽलंकारकाव्यानि नाभिषानानि वेदम्यहम् ॥ ४ ॥
६२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य - परम्परा