________________
एकावली आदि अलंकार रसोत्कर्ष उत्पन्न करलेमें सहायके हैं। इस काव्यमें पौराणिक मान्यताएं भी वर्णित हैं। पर यथार्थतः यह शास्त्रीय महाकाव्य है। पुरुदेव चम्पू ___इस चम्पूकाव्यमें आदितीर्थंकर ऋषभदेवका जीवनवृत्त वणित है । कथावस्तु १० स्तवकोंमें विभक्त है। कविने गद्य और पद्य दोनों ही प्रोढरूपमें लिखे हैं। मंगलपद्योंके जन जम्बूदोमा हि-तृत वर्णन है : रिडलके राज्यका परिसंख्याद्वारा वर्णन करते हुए लिखा है_ 'यस्मिन्महीपाले महीलोकलोकोत्तरप्रसाद शांतकुंभमयस्तंभायमानेन निजभुजेन धरणीयेगदनिविशेषमाविभ्राणे, बंधनस्थितिः कुसुमेषु चित्रकाव्येषु च अलंकाराश्रयता महाकविकाव्येषु कामिनीजनेषु च, धनलिनांबरता प्रावृषेण्यदिवसेषु कृष्ण पक्षनिशासु च, परमोहप्रसिंपादनं प्रमाणशास्त्रेषु युवतिजनमनोहररांगेषु च, शुभकरवालशून्यत्ता कोदंडधारिषु कच्छपेषु च परं व्यवतिष्ठत ॥
कविने भावात्मक विषयोंका समावेश पद्योंमें किया है और वर्णनात्मक संदर्भोका गद्यमें ! वर्णनशैलो बड़ो ही रमणीय और चित्ताकर्षक है । देवांगनाएं जन्माभिषेकके पश्चात् नृत्य करती हुई भावपूर्वक ऋषभदेवकी पूजा करती हैं
"नटत्सुरवधूजनप्रविसरत्कटाक्षावलिं । कपोलतलसंगतां त्रिभवनाधिपस्यादरात् ॥ सुराधिपतिसुन्दरी स्नपनतोयशंकावशात् ।
प्रमार्जयितुमुद्यता किल बभूव हासास्पदम् ।।५।१३।।" इस प्रकार इस चम्पूमें काव्यात्मक सभी गुण वर्तमान हैं। इसको गद्य-शैली तो पद्योंको अपेक्षा अधिक प्रौढ है ।
भव्यजनकण्ठाभरण
इस काव्यमें कुल २४२ पद्य हैं। इसमें आचार, नीति, दर्शन और सूक्ति इन सभीका समन्वय है । कतिपय पौराणिक मान्यताओंकी समीक्षा भी की गई है । इस ग्रन्थके प्रारंभमें वैदिक-पुराणोंकी कई मान्यताएं अकित हैं । गणेश, कात्तिकेय, शिव-पार्वतीके आख्यान निर्दिष्ट कर संकेतरूपमें उनकी समीक्षा भी की गई है । प्रसंगवश इस ग्रन्थमें यापनीय-सम्प्रदाय, श्वेताम्बर-सम्प्रदाय, आदिको भो समीक्षा की गई है। कविने बताया है कि धर्म सदा अहिंसासे होता है, हिसासे नहीं । जिस प्रकार कमल जलसे ही उत्पन्न हो सकता है अग्नि से नहीं, उसी प्रकार इन्द्रियनिग्रह और कषाविजय अहिंसा द्वारा ही संभव है, हिंसा द्वारा नहीं
आचार्यतुल्य काम्यकार एवं लेखक : ५३