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________________ गुणप्रतीतिः सुजनाज्जनस्य दोषेष्ववडा खलबल्पितेषु । अतो ध्र वं नेह मम प्रबन्धे प्रभूतदोषेऽप्ययशोवकाशः ।।१२७ इन उद्धरणोंसे यह स्पष्ट है कि वे दिगम्बर सम्प्रदायके कवि हैं। इस ग्रन्थमें 'चन्द्रप्रभ' और 'नेमिनिर्वाण के अतिरिक्त धनञ्जयको नाममाला और राजोमतिपरित्यागके भी उद्धरण मिलते हैं । स्थितिकाल काव्यानुशासन और छन्दोनुशासनके रचयिता वाग्भट्टका समय आशाघरके पश्चात् होना चाहिए | कविने नेमिनिर्वाणके साथ राजीसिपरित्याग या राजोमतिविप्रलंभके उद्धरण प्रस्तुत किये हैं । काव्यानुशासनमें आये हुए निम्नलिखित उद्धरणसे भी वाग्भटके समयपर प्रकाश पड़ता है "इति दण्डिवामनवाग्भटादिप्रणीता दशकाव्यगुणाः । वयं तु माधुर्योजप्रसादलक्षणांस्त्रीनेव गुणा मन्यामहे, शेषास्तेष्वेवान्तर्भवन्ति । तरथा-माधुर्ये कान्तिः सौकुमार्य च, औजसि श्लेषः समाधिरुदारता च । प्रसादेऽयंव्यक्तिः समता चान्तभवति।" इस अवतरणमें दण्डी, वामन और वाग्भट्टको मान्यताओंका कथन आया है। वाग्भट्टने वाग्भटालंकारको रचना जयसिंहके राज्यकालमें अर्थात् वि० सं० की १२वीं शताब्दिमें की है। अत्तएक काव्यानुशासनके रचयिता वाग्भट्टका समय १२वीं शताब्दिके पश्चात् होना चाहिए। आशाधरके 'राजीमतिविप्रलंभ' या 'राजीमतिपरित्याग' काव्यके उद्धरण आनेसे इन वाग्भट्टका समय आशाघरके पश्चात् अर्थात् वि० की १४वीं शतीका मध्यभाग होना चाहिए । रचनाएं __ वाग्भट्ट केवल अलंकार या छन्द शास्त्रके हो शाता नहीं हैं, अपितु उनके द्वारा प्रबन्धकाव्य, नाटक और महाकाव्य भी लिखे गये हैं | काव्यानुशासनकी वृत्तिमें लिखा है_ "विनिर्मितानेकनव्यनाटकच्छन्दोऽलंकारमहाकाव्यप्रमुखमहाप्रबन्धबन्धुरोऽपारतारशास्त्रसागरसमुत्तरणतीर्थायमानशेमुषो "महाकविश्रीवाग्भटो।" इस अवतरणसे स्पष्ट है कि वाग्भट्टने अनेक ग्रन्थोंकी रचना की है; पर अभी तक उनके दो ही अन्य उपलब्ध है-छन्दोनुशासन और काव्यानुशासन । छन्दोनुशासनको पाण्डुलिपि पाटणके श्वेताम्बरीय ज्ञानभण्डारमें विद्यमान है। १. काव्यानुशासन २।३१ । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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