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ई० में सिंहासनासीन हुआ था और उसका छोटा भाई पाण्डधप्प ई० सन् १२२४में राज्यपर अभिषिक्त हुआ था। उनकी बह्न बिठुलदेवी ई० सन् १२३२ में राज्यप्रतिनिधि नियुक्त की गयीं 1 बिटुलदेवीका पुत्र ही कामराय था, जो ई० सन् १२६४में राज्यासन हुआ। इतिहास बतलाता है कि सोमवंशो कदम्बोंकी एक शाखा वंगवंशके नामसे प्रसिद्ध थी और इस वंशका शासन दक्षिण कन्नड जिलेके अन्तर्गत वंगवाडीपर विद्यमान था । वीर नरसिंह वंगराजने ई० सन् ११५७से ई० सन् १२०८ तक शासन किया। इसके पश्चात् चन्द्रशेखरवंग और पाण्ड्यवंगने ई० सन् १२३९ तक राज्य किया । पाण्ड्यवंगकी बहन रानी बिटूलदेवी ई० सन् १२३९से ई० सन १२४४ तक राज्यासीन रहीं। तत्पश्चात् रानी बिट्ठलदेवी अथवा बिटुलाम्बाका पुत्र कामराय दंगनरेन्द्र हा । 'विजयवर्णी'ने उसे गुणार्णव और 'राजेन्द्रपूजिस' लिखा है। प्रशस्तिमें बताया है
"स्याद्वादधर्मपरमामृतदसचित्तः
सर्वोपकारिजिननायपदाअभृङ्गः । कादम्बवंशजलराशिसुधामयूखः
__ श्रीरायवंगनृपतिर्जगतीह जीयात् ।। कोतिस्ते विमला सदा वरगुणा वाणी जयश्रीपरा
लक्ष्मीः सर्वहिता सुखं सुरसुखं दानं विधानं महत् । ज्ञानं पीनमिदं पराक्रमगुणस्तुङ्गो नयः कोमलो
रूप कान्ततरं जयन्तनिभ भो श्रीरायभूमीश्वर ॥''' कामरायको वर्णीने पाण्ड्यवंगका भागिनेय बताया है
'तस्य श्रीपाण्ड्यवङ्गस्य भागिनेयो गुणार्णवः ।
विट्ठलाम्बामहादेवीपुत्रो राजेन्द्रपूजितः ।।२ विजयवर्गीके समयका निश्चय करनेके लिए 'शृंगारार्णवचन्द्रिका'का प्रतापरुद्रयशोभूषण, शृंगारार्णव और अमृतनन्दिके अलंकारसंग्रहके साथ तुलनात्मक अध्ययन करनेसे ऐसा प्रतीत होता है कि 'शृंगारार्णवचन्द्रिका' विषय और प्रतिपादनशैलीकी दृष्टिसे 'प्रतापरुद्रयशोभूषण' और 'अलंकारसंग्रह से बहुत प्रभावित है । अथवा यह भी संभव है कि इन दोनों ग्रंथोंको शृंगारार्णवन्द्रिकाने प्रभावित किया हो । डॉ० पी० बी० काणेने 'प्रतापरुद्रयशोभूषण'का
१. श्रृंगारार्णवचन्द्रिका, दशम परिच्छेद, पद्यसंख्या १९५ एवं १९७ । २. वहीं, प्रथम परिच्छेद, पद्यसंख्या १६ ।
३४ : तीर्थकर महावीर और उनकी बाचार्य-परम्परा