SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२५ फागुन शुक्ला पूर्णमासी बुधवारको हुई है। इससे इनका समय विक्रमकी १८वीं शतीका अन्तिम पाद और १९वीं शताब्दीका प्रथम पाद निश्चित होता है अर्थात् इनका समय विक्रम संवत् १८२५ है । रचना-परिचय __ इनकी एकमात्र रचना वर्धमानपुराण प्राप्त है। इसमें भगवान महावीरके पूर्व भवों और वर्तमान जीवनका विवाद एवं विस्तृत परिचय दिया गया है। इसकी भाषासे अवगत होता है कि उस समय हिन्दीको खड़ी बोलीका आरम्भ हो गया था। कविने अपनी यह रचना प्रायः अपने समयकी हिन्दीकी खढ़ी बोलीमें की है । रचना सरस और सरल है। ___ ग्रंथमें १६ अधिकार दिये गये हैं। प्रथम अधिकारमें मङ्गलाचरणके अनन्तर वक्ता और श्रोताके लक्षण दिये गये है। दूसरे अधिकारमें भगवान महावीरके पूर्व मवोंमेंसे पुरुरवा भोलके भवमें उसके द्वारा किये गये मद्य-मांसादिकके परित्यागका वर्णन करते हुये उसके सौधर्म स्वर्ग में देवपदकी प्राप्ति वणित है । तीसरे भवमें भरत चक्रवर्तीके पुत्रके रूपमें मरीचिकी पर्याय-प्राप्ति और उसके द्वरा मिथ्या मतकी प्रवृत्ति, फिर ब्रह्मस्वर्गमें देवपर्यायकी प्राप्ति, वहाँसे चलकर जटिल तपस्वीकी पर्याय, तत्पश्चात् सौधर्म स्वर्गकी प्राप्ति, फिर अग्निसह नामक परिव्राजककी पर्याय, फिर तृतीय स्वर्गमें देवपद-प्राप्ति, वहांसे आकर भारद्वाज ब्राह्मणकी पर्याय, फिर पांचवें स्वर्गमें देवपर्याय, फिर असंख्य वर्षों तक अनेक योनियों में भ्रमणादिका कथन किया गया है। । तृतीय अधिकारमें स्थावर ब्राह्मण, माहेन्द्र स्वर्गमें देव, राजकुमार विश्वनन्दि, दशधै स्वर्गमें देव, त्रिपृष्ठनारायण, सातवें नरकमें नारकी इन भवोंका वर्णन है। चतुर्थ अधिकारमें सिंह पर्याय और चारण मुनियों द्वारा सम्बोधन प्राप्त करनेपर सम्यक्त्वको प्राप्ति, फिर सौधर्म स्वर्गमें देवपर्याय, राजकुमार कनकोज्वल, सातवें स्वर्गमें देव, राजकुमार हरिषेण, दशवें स्वर्ग में देवपर्यायका कथन है। पांचवें अधिकारमें प्रियमित्र चक्रवर्तीक भवका सथा बारहवे स्वर्ग में देवपदकी प्राप्तिका वर्णन है।। __छठवें अधिकारमें राजा नन्दके भवमें तीर्थकरप्रकृतिका बन्ध तथा सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेन्द्र पदकी प्राप्तिका वर्णन है। १, वर्षमान पुराण १६॥३३०-३३३॥ पट्टावली : ४५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy