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सातवें अधिकारमें कुण्डपुरनरेश सिद्धार्थके महलोंमें कुबेर द्वारा तीर्थकरजन्मसे पूर्व रत्नोंकी वर्षा, माता द्वारा सोलह स्वप्नोंका दर्शन और महावीरका गर्भकल्याणक वर्णित है।
आठवें और नौवें अधिकारमें भगवानके जन्मकल्याण-महोत्सवका विस्तृत वर्णन किया गया है।
दशवें अधिकारमें भगवान्के बाल्यजीवन, किशोरावस्था, युवावस्था, वैराग्य और दीक्षा, कूलराजा द्वारा भगवानको प्रथम आहार, चन्दनाके हाथोंसे आहार लेनेपर चन्दनाको कष्टनिवृत्ति, तपश्चर्याकालमें विविध उपसोका सहन और केवलज्ञानप्राप्तिका वर्णन है। __ ग्यारहवें अधिकारमें देवों द्वारा भगवानका केवलज्ञानकल्याणक-महोत्सव मनाने और कुबेर द्वारा रचित समवशरणका वर्णन है।
बारहवें अधिकारमें गौतम इन्द्रभूतिका समवशरणमें आना, उसके द्वारा भगवानकी स्तुति करना गोर मादान मोदी शीक्षा नो नातिका वर्णन है ।
तेरहवेसे पन्द्रहवें अधिकार तक गौतम गणधर द्वारा किये गये प्रश्नों और प्रश्नोंके समाधानस्वरूप भगवानकी दिव्यध्वनिमें निरूपित तत्त्व-निरूपण बतलाया गया है।
सोलहवें अधिकारमें भगवानका विभिन्न देशोंमें विहार गौतम गणधर द्वारा श्रेणिकके तीन पूर्वभव, अन्तमें विहार करते हुए भगवानका पावामें निर्वाण, गौतमस्वामीको केवलज्ञानकी प्राप्ति और उनका धर्मविहार, धर्म उपदेश आदिका वर्णन करते हुए अधिकारके अन्तमें अपना विस्तृत परिचय देकर ग्रन्थको समाप्त किया है।
कविने इस काव्य-ग्रन्थमें दोहा, छप्पय, चौपाई, सवैया, अड्डिल्ल, गीतिका, सोरठा, करखा, पद्धरि, चाल, जोगीरासा, कवित्त, त्रिभंगी और चर्चरी छन्दोंका प्रयोग किया है, जिनकी संख्या सब मिलाकर ३८०६ है।
१९वीं शताब्दीकी यह हिन्दी रचना बहु प्रचलित रही है । इसका एक बार प्रकाशन सूरतसे हो चुका है । वह अब अनुपलब्ध है।
४४६ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा