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कविवर नवलशाह
कविवर नवलशाहकी हिन्दी में एक महत्वपूर्ण सचित्र रचना 'वर्धमान पुराण' उपलब्ध है। उन्होंने इस ग्रंथ के अन्तमें जो प्रशस्ति दी है, उस प्रशस्तिसे ज्ञात होता है कि ये गोलापूर्व जातिमें उत्पन्न हुये थे । इनका बैंक चन्देरिया और गोत्र ! इनके पूर्वज भीष्ममा भेलसी ( बुन्देलखण्ड ) ग्राममें रहते थे । उनके चार पुत्र थे- बहोरन, सहोदर, अमन और रतनशाह् । एकदिन भीषण साहूने अपने पुत्रोंको बुलाकर उनसे परामर्श किया कि कुछ धार्मिक कार्य करना चाहिये। हमें जो राज-सम्मान और धन प्राप्त है उसका सदुपयोग करना चाहिये। सबके परामर्शपूर्वक दीपावलीके शुभ मुहूर्त में उन्होंने पञ्चकल्याणक प्रतिष्ठाका आयोजन किया, जिसमें दुर-दुर देशसे धार्मिकजन आकर सम्मिलित हुये ! उन्होंने जिनबिम्ब बिराजमान किया । तोरण - ध्वजा - छत्रादिले मन्दिरको सुशोभित किया । आगत साधर्मीजनोंका सत्कार किया। और चारसंघको दान दिया, फिर रथयात्राका उत्सव किया । चार संघने मिलकर इनका टीका किया । और एकमत होकर इन्हें 'सिघई' पदसे विभूषित किया । यह बिम्बप्रतिष्ठा वि० सम्वत् १६५१ के अगहन मासमें हुई थी । उस समय बुन्देलखण्ड में महाराज जुझारका राज्य था ।
इनके पूर्वजोंने भेलसीको छोड़कर खटोला गांवमें अपना निवास बनाया । इनके पिताका नाम सिंघई देवाराय और माताका नाम प्रानमती था। सिंघई देवारायके चार पुत्र थे — नवलशाह, तुलाराम, घासीराम और खुमानसिंह | नवलशाह ही प्रस्तुत कविवर हैं | कविवरने वर्धमानपुराणकी रचना महाराज छत्रसालके पौत्र और सभासिंहके पुत्र हिन्दुपतिके राज्यमें की थी। कविबरने लिखा है कि उन्होंने और उनके पुत्रने मिलकर आचार्य सकलकीर्तिके वर्धमानपुराणके आधारसे अपने 'वर्धमानपुराण' की रचना की है। ग्रंथके अध्ययनसे कविवरकी काव्य-प्रतिभा और सिद्धान्त - ज्ञानका अच्छा परिचय मिलता है । वे चारों अनुयोगोंके विद्वान थे, कवि तो थे हो ।
समय-निर्णय
इनका समय निश्चित है । इन्होंने वर्धमानपुराणकी समाप्ति विक्रम सम्वत्
४४४ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
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