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इनके पट्टरूपी कुमुदको प्रकाशित करनेके लिये चन्द्रमाके सामन, अञ्ज, वङ्ग, तेलङ्ग, लिङ्ग, , गाट, सार, कुल, कलनरहट, चीन, चोल्हं, हब्ब, खुरखाण, आरब, तौलात, मेदपाट, मालव, पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, गुर्जर, वाग्बर, रायदेश, नागर, चाल, मरुस्थल, स्फुरदंगि, कोशल, मगध, पल्लव, कुरुजांगल, काञ्ची, लाबुम, पुद्रोट, काशी, कलिङ्ग, सौराष्ट्र, काश्मीर, द्राविड़, गौड़, कामरू, मलत्ताण, मुगी, पठाण, बुगलाण, हडावट्ट, सपादलक्ष, सिन्धु, सिन्धुल, कुन्तल,केरल, मंगल, जालोर, गंगल, सुन्तल, कुरल, जांगल, पंचालन, नट्ट, घट्ट खेट्ट, कोरट्ट, वेणुतट, कलिकोट, मरहट्ट, कोरट्ट, चैरट्ट, खेरट्ट, स्मैरतट्ट, महाराष्ट्र, विराट, किराट, नमेद, सिन्धुतट, गंगेतट, पल्लव, मल्लबार, कवोट, गौड़वाड़, सिंगल, किंगल, मलयम, मरुमेखल, नेपाल, हैवतरुल, संखल, करल, बरल, मोरल, श्रीमाल, नेखल, पिच्छल, नारल, डाइल, ताल, तमाल, सौमाल, गौमाल, रोमाल, तोमल, केमाल, हेमाल, देहल, सेहल, टमाल, कमाल, किरात, मेवात, चित्रकूट, हेमकृट, चुरंड, मुरंड, उद्याण, आट्रमाट्र, पुलिन्द्र और सुराट्र आदि देशोंमें इन्दु और कुवलयके समान स्वच्छ यशोराशिको उपाजित करनेवाले, सभी शास्त्ररूपी समुद्र में पारंगत, अपनी व्याख्या-सुधा-धारासे सभी भव्यजनोंको पुष्ट करने वाले और सभी तार्किकोके शिरोमणि दिल्ली-सिंहासनके अधीश्वर सार्थक नामवाले अभिनव भट्टारक श्रीवादिभूषणदेव हुए ॥१३!!
श्रुतमुनि-पट्टावलि
{ शक सं० १३५५ ई० सन् १४३३ ) ( प्रथममुख)
श्री जयत्यजय्यमाहात्म्यं विशासितकुशासनं । शासनं जैनमुद्धासि मुक्तिलक्ष्म्यैकशासनं ।।१।। अपरिमितसुखमनल्पावगममयं प्रबलबलहृतातङ्क(म)। निखिलावलोकविभवं प्रसरतु हृदये परं ज्योतिः ।।२।। उद्दीप्ताखिलरत्नमुद्धृतजडं नानानयान्तह स स्यात्कारसुधाभिलिप्तिजनिभृत्कारुण्यकूपोच्छितं । आरोप्य श्रुतयानपात्रममृतद्वोपं नयन्तः परा-- नेते तीत्थंकृतो मदीयहृदये मध्ये भवाब्ध्यासतां ||३||
१. जैन शिलालेखसंग्रह, प्रथमभाग, अभिलेख-संख्या १०८, पृष्ठसंख्या १९५-२०७ । ४१० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा