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________________ 1 चरणकमल जैन राजाओं तथा अन्य राजाओंसे पूजे गये हैं, ऐसे अभिनव बालब्रह्मचारी श्री भट्टारक विजयकीसिंदेव हुए ||१०|| " जो इनके पट्टरूपी पयोनिधको उल्लसित करनेके लिये चन्द्रमाके समान हैं, प्रमाणपरीक्षा, पत्रपरीक्षा, पुष्पपरीक्षा, परीक्षामुख, प्रमाणनिर्णय, न्यायमकरन्द, न्यायकुमुदचन्द्रोदय, न्यायविनिश्चयालङ्कार, श्लोकवार्तिक, राजवार्तिकालङ्कार, प्रमेयकमलमार्तण्ड, आप्तमीमांसा, अष्टसहस्त्री चिन्तामणि, मीमांसाविवरण, वाचस्पतिकी तत्त्वकौमुदी आदि कर्कश न्याय, जेनेन्द्र शाकटायन, इन्द्र, पाणिनि, कलाप, काव्यादिमें विचक्षण हैं, त्रैलोक्यसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, क्षपणसार, त्रिलोकप्रज्ञप्ति, अध्यात्माष्टसहस्री और छन्द, अलङ्कारादि शास्त्रसमुद्रके पारगामी हैं, शुद्धात्माके स्वरूपके चिन्तनसे निद्राको विनष्ट करनेवाले हैं, सब देशोंमें विहार करनेसे अनेक कल्याणोंको पानेवाले है, विवेकविचार, चतुरता, गम्भीरता, धीरता, वीरता आदि गुणगणके समुद्र हैं, उत्कृष्टपात्र हैं, अनेक छात्रोंका पालन करनेवाले है, उत्तम उत्तम यात्राओंके करनेवाले हैं, विद्वन्मण्डलीमें सुशोभित शरीरवाले हैं, गोड़वादियोंके अन्धकारके लिए सूर्यके समान हैं, कलिंगके वादिरूपी मेघोंके लिये वायुके समान हैं, कर्नाटके वादियोंके प्रथम वचनका खण्डन करने पर समर्थ है, पूर्व वादी मातंगके लिये सिंहके समान हैं, तौलके वादियोंकी विडम्बनाके लिये वीर हैं, गुर्जरवादिरूपी समुद्र के लिये अगस्त्य के समान है, मालववादियोंके लिये मस्तकशूल हैं, अनेक अभिमानियोंके गर्वका नाश करनेवाले हैं, स्वसमय और परसमयके शास्त्रार्थको जाननेवाले हैं और महाव्रतको अंगीकार करनेवाले हैं, ऐसे अभिनव सार्थक नामवाले श्रीशुभचन्द्राचार्य हुए || ११|| इनके पट्टपर जो अलौकिक बुद्धिसे युक्त हैं, सुनिश्चित और असम्भव बाघकप्रमाणादि साधनसमूहसे संसाधित, तीनों असोधारण विशेषणोंसे परमात्माको सिद्ध करनेवाले हैं, परमागमरूपी समुद्रको बढ़ानेके लिये चन्द्रमाके समान हैं, जिनके स्वच्छ चरणकमल परवादियोंके समूहले अचित हैं, ऐसे बालब्रह्मचारी श्री भट्टारक सुमतिकीर्तिदेव हुए ||११|| · इनके पट्टरूपी कमलके लिये सूर्य के समान, पांच महाव्रत, पांच समिति, तीन गुप्ति और अट्ठाईस मूलगुणोंसे युक्त, अपने उपदेशरूपी अमृतसे भव्योंको परिपुष्ट करनेवाले, कर्मरूपी भयङ्कर पर्वतको चूर्ण करनेमें समर्थ, परमात्मगुणोंकी अतिशय परीक्षासे सर्वज्ञका स्वरूप माननेवाले और समुज्ज्वल विज्ञानके बलसे सामान्य और विशेषरूप वस्तुको समझनेवाले परमपवित्र भट्टारक श्रीगुणकीत्तिदेव हुए ||१२|| पट्टावली : ४०९
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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