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सैद्धान्तिक महातपस्वी अभयकीति और वनवासी महापूज्य वसन्तकीत्ति हुए ||२१||
जगत्प्रख्यातकीत्ति जन श्रीवनवासी वसन्तकीत्ति आचार्यके शिष्य अनेक गुणोंके स्थान, यम, नियम, तपश्चरण, महाव्रतादि नदियोंके सागर, परवादिगजविदारण- सिंह और वादीन्द्र भवनविख्यात विद्याधीश्वर श्रीविशालकीर्ति हुए और उनके पट्टधर श्रेष्ठ चरित्रमूर्ति एकान्तरादि-उग्रतपोविधानमें ब्रह्माके समान सम्मार्गप्रवर्तक श्रीशुभकीत्ति हुए ||२२||
इनके पट्टपर हमीरमहाराजसे पूजनीय संयमसमुद्र को बढ़ाने में चन्द्रमासमान प्रसिद्ध सैद्धान्तिक श्री धर्मचन्द्र हुए ||२४||
उनके पट्टपर यतिपत्ति स्याद्वादविद्यासागर रत्नकीर्ति हुए, जिनके शिष्य अनेक देशों में विस्तारित हैं, वे धर्म्मकथाओंके कर्ता बालब्रह्मचारी श्रीरत्नकीति गुरु जयवन्त रहें ||२५|
समस्त संघों में तिलक श्रीनन्दिसंव में शुभकीतिसे प्रसिद्ध निम्मल सारस्वतीय गच्छमें चन्द्रमासमान दिगन्तविश्रामकीत्ति श्रीरत्नकीत्तिंगुरु जयवन्त रहें ||२६||
इनके पट्टपर, श्री पूज्यपादस्वामीके ग्रन्थोंकी टीका करनेसे पायी है प्रसिद्धि जिन्होंने, नानागुण विभूषित, वादविजेता, अनेक राजाओंसे पूजित श्रीप्रभाचन्द्रचन्द्रदेवतारास्थिति- पर्यन्त जयवन्त रहें ||२७|
श्रीप्रभाचन्द्रदेवके पट्टपर विशुद्ध सिद्धान्तरत्नाकर और अनेक जिनप्रतिमाओकी प्रतिष्ठा करानेवाले श्रीपद्मनन्दी हुए ||२८||
जिनके शुद्ध हृदयमें अमेदभावसे आलिङ्गन करती हुई ज्ञानरूपी हंसी आनन्दपूर्वक कीड़ा करती है । जिन्होंने जिनदीक्षा धारण कर जिनवाणी और पृथ्वीको पवित्र किया है, बहु परमहंस निर्ग्रन्थ पुरुषार्थशाली अशेषशास्त्रज्ञ सर्वहितपरायण मुनिश्रेष्ठ श्रीपद्मनन्दी मुनि जयवन्त रहें ||२९||३०||३१||
श्रीपद्मनन्दीके शिष्य अनेक वादियोंमें प्राप्तविजय, उपदेशले अज्ञानतम-दलन करनेवाले जगत्प्रसिद्ध श्रीसकलकीर्त्ति भट्टारककी जय रहे ||३२||
श्रीमान् सकलकोत्तिं आचाय्यंके पट्टधर श्रीभुवनकीर्त्तिमुनि, परमतपस्वी अनेक मुनिगणोंसे सेवित, अनेक वादोंमें जिनधर्म्मकी प्रभावना करनेवाले समस्तसंघोंकी रक्षा करें ||३३||
उनके शिष्य ज्ञानशाली, तपोभूमि, नीतिज्ञ, अनेक जैन राजाओंसे स्तुत, ज्ञानभूषणयति सबकी रक्षा करें ||३४||
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पट्टावली ४०१