________________
तत्पदसेवी, निखिल - तार्किकचूडामणि, श्रीगोमट्टसार आदि महाशास्त्रज्ञ विजयकीर्त्ति हुए ||३५||
T
मल्लिसेरव, महादेवेन्द्र प्रभृति मुख्य राजाओं द्वारा पूजित तर्कादिषट् शास्त्र के ज्ञाता, यशः शाली, भवदुःखभन्जन वह बिजयकीर्त्ति मुनि हम सबकी रक्षा करें ||३६||
1
भव्योंको आनन्द देने में पूर्णचन्द्र, स्याद्वादन्यायसे अनेक राजाओंको जैन बनाने वाले, श्री विजयकीर्त्तिके शिष्य, जगत्प्रसिद्ध भारतेन्दु षट्तर्कवागीश, वादिरूप ही सिंह, द र कर्ममुन्नतिको नाशकरने वाले, आत्मानुभवी, समस्तशास्त्रपारङ्गत, दयालु, श्रीशुभचन्द्राचार्य्यं, समस्त मुनिगणोंकी रक्षा करें ||३७||३८||
श्री शुभचन्द्राचाय्यंके पट्टधर, भद्र लोगों को उपदेशामृतवर्षी, श्रीसुमतिकीर्त्ति
भट्टारक हुए ||३९||
संसारको क्षणभंगुर जानकर मोक्षाभिलाषी हो तपस्वी हुए वे यतिर्पात श्रीसुमतिकीर्तिदेव, मोह- कामादिशत्रु-विजयी, जयवन्त रहें ॥४०॥
उनके पट्टधर सूर्य्यसमान, स्याद्वादविद्यामें निपुण, विशाल कीर्त्तिवाले, अपनी अमृतवाणीसे भव्यगणोंकी पुष्टि करनेवाले मुनिगणसे पूजित, श्रीगुणकीर्ति आचार्य हुए ॥४१॥
विद्वद्भट, विशुद्धमति मुमुक्षु, मधुरवचन, व्यवहारवेत्ता, तर्कशास्त्रज्ञ वह श्रीमान् गुणकीर्त्ति इस जगत् में जयवन्त रहें ||४२॥
उनके पट्टकमलको विकसित करनेमें पद्मबन्धु कुवादियोंके मुखकुमुदोंको मुद्रित करने में सूर्य, अन्वकार नष्ट करनेमें तपन, सूर्य्यसे भी अधिक तेजस्वी श्रीमान् वादिभूषण यतिवर चिरंजीवी रहे ||४३||
P
अनेकन्यायशास्त्रवेत्ता, अनेक जैन नृपोंसे पूजित, कर्णाटक देशको सुशोभित करनेवाले, कलिकालमें गौतमगणधर के समान, रत्नत्रयविभूषित, श्रीशुभचन्द्राचायं समानप्रभाशाली, श्रीवादिभूषणगुरु वर्तमान रहें ॥४४॥
उनके पट्टकमलको बिकसित करनेवाले, अज्ञानको शोषणकरनेवाले, भव्यकमलोके सूर्य्यं श्रीरामकीर्तिभट्टारक हुए ||४५||
वह व्याकरणादि सर्वशास्त्रनिपुण, श्रीस्याद्वादन्यायायवेदी, राजमान्य, सरस्वतीयगच्छपति रामकीर्ति भट्टारक इस जगत्में अलङ्कृत रहें ||४६|| सर्वशास्त्र के जाननेवाले सर्वकलासम्पन्न, श्रीयशः कीर्त्ति
उनके हुए ४७४
४०२ : तीर्थकर महावीर और उनको आचार्य परम्प
पट्ट्टपर