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________________ सकती है। श्रुतकीत्तिकी प्रशंसा नागचन्द्रकृत रामचन्द्रचरितपुराण ( पम्प रामायणके प्रथम आश्वासमें चौबीस-पच्चीसवें पद्योंमें ) भी अङ्कित है। इस काव्यको रचना शक सं० २०२२के लगभग हुई है। प्रतापपुरकी रूपनारायण वस्तिका जीर्णोद्धार और जिननाथपुरमें एक दानशालका निर्माण करोतले महागलामा पनि पण्डितदेवके स्वर्गवास होने पर यादववंशी नारसिंह नरेशके मंत्री हुल्लप्पने निषद्याका निर्माण कराया, जिसकी प्रतिष्ठा देवकीत्ति आचार्यके शिष्य लक्लनन्दि, माधव और त्रिभुवनदेवने दानसहित की। __ इस अभिलेखमें तीन बातें बड़ी ही महत्त्वपूर्ण है। पहली बात तो यह है कि इसमें गौतम गणधरकी परम्परामें भद्रबाहु और भद्रबाहके अन्वयमें चन्द्रगुप्तका उल्लेख आया है। तथा चन्द्रगुप्तके अन्वयमें कोण्डुकुन्द (कुन्दकुन्द) का कथन है ! नन्दिसंघकी पट्टापलिमें भद्रबाहु, गुप्तिगुप्त, माघनन्दि, जिनचन्द्र और इसके पश्चात् कोण्डुकुन्दका नाम आया है। इन्द्रनन्दि श्रुतावतारके अनुसार कोण्डुकुन्द आचार्योंमें हुए हैं, जिन्होंने अङ्गज्ञानके लोप होनेके पश्चात् आगमज्ञानको ग्रन्धबद्ध किया । ___ मूलसङ्घके अन्तर्गत नन्दिगणमें जो देशोगणप्रभेद हुआ, उसमें गोल्लदेशाधिपके आचार्य गोल्लाचार्य हुए हैं और इन्हींको परम्परामें देवकीत्तिका जन्म हुआ है। नयकीर्ति-पट्टावलि ( शक सं० १०८९) श्रीमन्मुनीन्द्रोत्तमरत्नवर्गाः श्रीगौतमाद्याः प्रभविष्णवस्ते । तत्राम्बुधौ सप्तमहद्धि-युक्तास्तत्सन्ततौ नन्दिगणे बभूव ||३|| श्रीपचनन्दीत्यनवद्यनामा ह्याचार्यशब्दोत्तरकोण्डकुन्दः । द्वितीयमासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसजातसुचारणद्धिः ||४|| अभूदुमास्वातिमुनीश्वरोऽसावाचार्य-शब्दोत्तरगृपिच्छः । तदन्वये तत्सहसो (शो)ऽस्ति नान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थ-वेदी ।।५।। श्रीगृपिञ्च्छ-मुनिपस्य बलाकपिच्छ: शिष्योऽप्यनिष्ट भुवनत्रय-ति-कीतिः । चारित्रचञ्चुरखिलावनिपालमौलि . माला-शिलीमुख-विराजित-पाद-पपः ।।६।। १. जैनशिलालेखसंग्रह, प्रथम भाग, अभिलेखसंख्या ४२ । पट्टावली : ३८७
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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