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सोमयनें कैकोण्डुदो सौभाग्यद् - कणियेनिप्पलम
न्दीभुवनतलदोला हा
रामय सज्यशास्त्र - दान - विधान || ४०||
इस प्रशस्ति में कुन्दकुन्दाचार्य, गुद्धपिच्छ बलापिच्छ, गुणनन्दि, देवेन्द्र सैद्धान्तिक और कलधौतनन्दिका उल्लेख आया है । कलद्योतनन्दिके पुत्र महेन्द्रकीत्ति हुए, जिनकी आचार्य परम्परामें क्रमसे वीरनन्दि, गोल्लाचार्य, त्रैकाल्ययोगि, अभयनन्दि और सकलचन्द्र मुनि हुए । इस अभिलेखमें आचार्यकि तप एवं प्रभावका भी सुन्दर चित्रण हुआ है । काल्ययोगीके विषयमें कहा जाता है कि इनके तपके प्रभाव से एक ब्रह्मराक्षस इनका शिष्य बन गया था । इनके स्मरणमात्र से बड़े-बड़े भूत भागते थे, और इनके प्रतापसे करञ्जका तेल घृतमें परिवर्तित हो गया था । सकलचन्द्रमुनिके शिष्य मेघचन्द्र विद्य हुए, जो सिद्धान्त में वीरसेन, तर्कमें अकलंक और व्याकरण में पूज्यपादके तुल्य विद्वान थे । शक सं० १०३७ मार्गशीर्ष शुक्ला चतुर्दशी, गुरुवार, मन्यत्तसम्वत्सरको धनुलगन पूर्वाह्न समय में इन्होंने सध्यानपूर्वक शरीरका त्याग किया। मेघचन्द्र देशीगण, पुस्तकगच्छके आचार्य थे। इनके प्रमुख शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्त देव थे, जो विभिन्न विषयोंके ज्ञाता, वादियोंके मदको चूर करनेवाले प्रतापी और मोह - अन्धकारको ध्वंस करनेवाले थे । इन्होंने महाप्रधान दण्डनायक गंगराज द्वारा माघचन्द्र वैद्यकी निषधा तैयार करायी । इस अभिलेखमें नन्दिगणका उल्लेख आया है और इसी गणके अन्तर्गत पद्मनन्दि, कुन्दकुन्द आदिका निर्देश किया है ।
मल्लिषेण प्रशस्ति
(शक संo १०५० ई०, सन् ११२८ )
इस पट्टावलिमें मूलरूपसे मल्लिषेण मलधारिदेवके समाधिमरणका निर्देश आया है । चन्द्रगिरि पर्वत (कटवत्र) के पार्श्वनाथमन्दिर ( वसति) के नवरंगमें यह प्रशस्ति अकित की गई है। आचार्य के इतिहासकी दृष्टिसे इस प्रशस्तिका मूल्य अधिक है । ७२ पद्योंमें दिगम्बर परम्पराके समस्त प्रसिद्ध आचार्योंका नाम आया है । प्रशस्ति निम्न प्रकार है
(उत्तरमुख)
श्रीमन्नाथकुलेन्दुरिन्द्र-परिषद्वन्द्यश्रुत -श्री-सुधाधारा-धौत-जगत्तमोऽपह पह-महः पिण्ड - प्रकाण्डं महत् ।
पट्टावली : ३७३