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________________ विस्तारित है कीति जिनकी, ऐसे (३६) श्रीकमलकीर्ति हुए |||२३|| २४मा२५॥२६ ||२७||२८||२९||३०||३१|| यह कमलकीत्ति सर्वं सङ्घकी रक्षा करनेवाले और इनकी महिमा पाकर बड़े-बड़े मानियोंने भी मान छोड़ दिया और भव्योंको प्रीति उत्पन्न करने वाले हुए । इनकी जय हो ॥३२॥ इनके पट्टपर (३७) क्षेमकीत्ति, इनके अति महान पट्टरूपी पर्वतपर उदय होकर दुर्जय मोहान्धकारका नाश करनेवाले (३८) श्रीहेमकीत्ति हुए ॥३३॥ ॥३४॥ इनके (३९) कमलकीति, (४०) कुमारसेन, (४१) हेमचन्द्र, (४२) पनन्दि, (४३) यशःकीति, (४४) क्षेमकीर्ति, (४५) त्रिभुवनकीत्ति, (४६) सहस्रकीति, (४७) महीचन्द्र, (४८) देवेन्द्रकीति, (४९) जगत्कीत्ति, (५०) ललितकीति, (५१) राजेन्द्रकीत्ति, (५२) मुनीन्द्रशुभकोति हुए १२५ से ५३ ।। इस पट्टावलीके भावानुवादमें जिन आचार्योंके विशेषणोंसे कुछ ऐतिहासिक महत्व है, उनका वर्णन किया है। शेष आचायोकी केवल नामावली ही अत की गयी है । श्रुतघर - पट्टावली णमिण वड्ढमाणं ससुरासुरवंदिदं विगयमोहं ।" वरसुदरपरिवादि वोच्छामि जहाणुपुब्दीए ॥ १ ॥ विजलगिरितु गसिहरे जिणिदइदेण वमाणेय | गोदमभुणिस्स कहिदं पमाणणयसंजु अत्यं ॥२॥ तेण वि लोहज्जस्स य लोहज्जेण य सुषम्मणामेण । गणधरसुधम्मणा खलु जंबूणामस्स णिहिदु ॥३॥ चदुरमलढद्धिसहिदे तिष्णदे गणधरे गुणसभग्गे । केवलणाणपईवे सिद्धि पत्ते णमंसामि ॥४॥ गंदी य दिमित्तो अवराजिदमुणिवरो महातेओ । गोवड्ढणो महप्पा महागुणो मद्दवाह य ॥५॥ पंचेदे पुरिसबरा चउदसपुवी हवंति णायग्वा । बारसअंगघरा खलु वीरजिणिदस्स गायब्वा ॥ ६ ॥ १. जंबूदीवपण्णत्ती १२८-१७१ ३६६ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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