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________________ एषो निजगुरुपट्ट प्राप्याध्यासीन्मुनीन्द्रशुभकीतिः । युगयुगश्वेद्विकवर्षे बीरस्याहो गतो हि सुरलोक ॥५३॥ काष्ठासङ्घकी पट्टावलीका भाषानुबाद संसाररूपी समुद्रका पार जिन्होंने पाया है, ऐसे जिनेन्द्र श्रीवीरनाथ स्वामोको नमस्कारकर मैं अपने अर्थकी सिद्धिके लिये अपने गुरुओंका नाम कहता हूँ॥१|| ___ श्री वर्द्धमान भगवानके तीन शिष्य केवली हुए। जम्बूस्वामी, गौतमस्दामो और सुधर्माचार्य ॥२॥ इनके बाद नमस्कार करने योरस मीदिमुनि, दिनित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्र बाहु ये पाँच समस्त चौदह पूर्वके वेत्ता हुए अर्थात् श्रुतकेवली हुए ॥३॥४ा . इनके विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रियाचार्य, नागसेन, जयसेन, धृतिषेण, विजय, गङ्गदेव, धर्मषेण ये सब मुनि दश पूर्वके धारी और भव्य-कमल प्रकाशन सूर्य हुए ।।५।।६।।७। नक्षत्राचार्य, जयपालाचार्य, मुनीन्द्र पाण्डुनामाचार्य, ध्रुवसेनाचार्य, कंसाचार्य ये मुनि एकादशांग अर्थात् ग्यारह अङ्गके धारी हुए ८॥९॥ सुभद्राचार्य, यशोभद्र, भद्रबाहु और लोहाचार्य ये एक अङ्गके धारी हुए॥१०॥ __इन लोहाचार्य स्वामीके (१) जयसेन, (२) श्रीवीरसेन, (३) ब्रह्मसेन, (४) रुद्रसेन, (५} भद्रसेन, (६) कीत्तिसेन, (७) जयकीति, (८) विश्वकीति, (९) अभयसेन, (१०) भूतसेन, (११) भावकीत्ति, (१२) विश्वचन्द्र, (१३) अभयचन्द्र, (१४) माघचन्द्र, (१५) नेमिचन्द्र, (१६) विनयचन्द्र, (१७) बालचन्द्र, (१८) त्रिभुवनचन्द्र, (१५) रामचन्द्र, (२०) विजयचन्द्र ॥१शा१२॥१३॥॥१४॥१५॥१६॥ इनके (२१) यशःकीति, (२२)अभयकीति, (२३)महासेन, (२४) कुन्दकीति, (२५) त्रिभुवनचन्द्र, (२६) रामसेन, (२७) हर्षषेण, (२८) गुणसेन हुए ॥१७||१८||१९॥ इनके कामदर्पदलन (२९)श्रीकुमारसेन, (३०) प्रतापसेन, हुए । ॥२०॥२॥ इनके पट्टपर महातपस्वी, परमोत्कृष्ट आत्मध्यानके ध्याता (३१) श्री माहवसेन हुए ॥२२॥ इनके पट्टपर(३२)विजयसेन, (३३) नयसेन, (३४)श्रेयांससेन, (३५) अनन्तकीति इन दिगम्बर मुनियोंके पट्ट पर सर्वलोकहितकारी जैन सिद्धान्तके अपूर्व ज्ञाता पट्टावली : ३६५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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