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यह प्रशस्ति-पद्य श्रवणबेलगोलाके स्व० पं० दौर्बलिजिनदास शास्त्री के पुस्तकालयवाली नेमिनिर्वाण काव्यकी प्रतिमें भी प्राप्य है ।'
प्रशस्ति-पद्य से अवगत होता है कि वाग्भट्ट प्रथम प्राग्वाट -- पोरवाड़ कुलके थे और इनके पिताका नाम छाड़ था । इनका जन्म अहिछत्रपुर में हुआ था । महामहोपाध्याय डॉ० गौरीशंकर हीराचन्द्र ओझा के अनुसार नागौरका पुराना नाम नागपुर या अहिछत्रपुर है। महाभारत में जिस अहिछषका उल्लेख है वह तो वर्तमान रामनगर (जिला बरेली उत्तर प्रदेश ) माना जाता है । 'नायाधम्मक हाओ में भी अहिछत्रका निर्देश आया है, पर यह अहिछत्र चम्पाके उत्तरपूर्व अवस्थित था। विविधतीर्थंकल्प में अहिछत्रका दूसरा नाम शंखवती नगरी आया है । इस प्रकार अहिछत्रके विभिन्न निर्देशोंके आधार पर यह निर्णय करना कठिन है कि वाग्भट्ट प्रथमने अपने जन्मसे किस अहिछत्रको सुशोभित किया था । डॉ० जगदीशचन्द्र जेनने अहिछत्रकी अवस्थिति रामनगरमें मानी है ।" किन्तु हमें इस सम्बन्ध में ओझाजीका मत अधिक प्रामाणिक प्रतीत होता है और कवि वाग्भट्ट प्रथमका जन्मस्थान नागौर ही जंचता है । कवि दिगम्बर सम्प्रदायका अनुयायी है, यतः मल्लिनाथको कुमाररूप में नमस्कार किया है ।"
स्थितिकाल - वाग्भट्ट प्रथमने अपने काव्य में समय के सम्बन्ध में कुछ भी निर्देश नहीं किया है | अतः अन्तरंग प्रमाणोंका साक्ष्य ही शेष रह जाता है । गग्भटालंकारके रचयिता वाग्भट्ट द्वितीयने अपने लक्षणग्रंथ में 'नेमिनिर्वाण' काव्यके छठे सर्गके "कान्तारभूमी" (६४६) "जहुर्वसन्ते" (६।४७) और "नेमिविशालनयनयो: " ( ६ |५१) पद्य ४३५, ४१३९ और ४१३२ में उद्धृत किये हैं ।
निर्वाणके सातवें सर्गका "वरण: प्रसून विकरावरणा" २६ पद्य भो वाग्भटालंकारके चतुर्थं परिच्छेदके ४० वें पद्यके रूपमें आया है । अतः नेमिनिर्वाणकाव्यकी रचना वाग्भटालंकारके पूर्व हुई है । वाग्भटालंकारके रचयिता वाग्भट्ट द्वितीयका समय जयसिंहदेवका राज्यकाल माना जाता है | प्रो० 'बूलर'ने अनहिलवाड़ के चालुक्य राजवंशकी जो वंशावली अंकित की है उसके
१. जैनहितैषी भाग ११, अंक ७-८, पृ० ४८२ ।
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२. नागरीप्रचारिणी पत्रिका, काशी, भाग २, पृ० ३२९ ।
३. महाभारत, गीताप्रेस, ५।१९।३० ।
४. नायाचम्मकामो १५।१५८ ।
५. Life in Ancient India as depicted in the Jain Catons Bombay, 1947, pp. 264-265.
६. नेमिनिर्वाण काव्य १११९ ।
आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : २३