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णिब्वाणं गदे बासद्विवरसेहि केवलणाणदिवायरो भरहम्मि।६२२३३णवरि तक्कालेसयलसुदणाणसंताणहरो विष्णुभाइरियो जादो। अतुट्टसंताणस्वेण दियाइरियो अवराइदो गोवद्धषो मद्दबाहु त्ति एदे सकलसुदधारया जादा। एदेखि पंचण्हं पि सुदकेवलीणं कालसमासो वस्ससदं ११००५ । तदो भद्दबाहुमहारए सग्गं गदे संते भरखत्तैम्मि अत्यमिओ सुदणाणसंपुण्णमियंको, भरहखेत्तमारियमण्णाणंघयारेण | णवरि एक्कारसण्णमंगाणं विज्जाणुपवादपेरंतदिढ़िवादस्स य धारओ विसाहाइरिओ जादो। गरि उवरिमचत्तारि वि पुवाणि वोच्छिणाणि तदेगदेसधारणादो। पुणो तं विगलसुदणाणं पोढिल्ल-सत्तिय-जय-णाग-सिद्धत्य-चिदिसेण-विजय बुद्धिल्ल-गंगदेव-धम्मसेणाइरियपरंपराए तेयासीदिवरिससयाइमार्गतूण वोच्छिण्णं ।१८३।११। तदो धम्मसेणभडारए सम्गं गदे गठे दिट्टिवादुज्जोए एक्कारसण्णमंगाणं दिद्विवादेगदेसस्स य धारयो जक्सत्ताइरियो जादो। तदो तमेक्कारसंग सुदणाणं जयपाल-पांडु-ध्रुवसेण कसो ति आइरियपरंपराए वीसुतरवेसदवासाइमागंतूण वोच्छिण्णे । २२०१५ । तदो कंसारिए सग्गं गदे वोच्छिण्णे एक्कारसंगुज्जोए सुभद्दाईरियो आयारंगस्स सेसंग-पुब्वाणमेगदेसस्स य धारओ जादो । तदो तमायारंग पि जसमद्द-जसबाहु-लोहाइरियपरंपराए अट्ठारहोत्तरवरिससयमागंतूण वोच्छिण्णं ।११८-४।। सव्वकालसमासो तेयासीदीए अहिह्य छस्सदमेतो १६८३।। पुणो एत्य सत्तमासाहियसत्तहत्तरिवासेसु । । अवणिदेसु पंचमासायिपंचुत्तरछस्सदवासाणि वति । एसो वीरजिणिदणिव्वाणगदिवसादो जाव सगकालस्स आदी होदि तावदियकालो । धव० ४. १. ४४, पृ० १२९-१३२
'उक्त पांच अस्तिकायादिक क्या है ?' ऐसे सौधर्मेन्द्रकै प्रश्नसे संदेहको प्राप्त हुए, पाँचसो, पांच सौ शिष्योंसे सहित तीन भ्राताबोंसे वेष्टित, मानस्तम्भके देखनेसे ही मानसे रहित हुए, वृद्धिको प्राप्त होनेवाली विशुद्धिसे संयुक्त, वर्धमान भगवान्के दर्शन करनेपर असंख्यात भवोंमें अजिंत महान् कर्मोको नष्ट करने वाले, जिनेन्द्रदेवकी तीन प्रदक्षिणा करके, पंचमृष्टियोंसे अर्थात् पांच अंगोंद्वास भृमिस्पर्शपूर्वक चंदना करके एवं हृदयसे जिनभगवानका घ्यानकर संयमको प्राप्त हुए, विशुद्धिके बलसे अन्तर्मुहुर्तके भीतर उत्पन्न हुए समस्त गणधरके लक्षणोसे संयुक्त तथा जिनमुखसे निकले हुए बीजपदोंके ज्ञानसे सहित ऐसे गौतमगोत्रवाले इन्द्रभूति ब्राह्मणद्वारा चूंकि आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्तिअंग, ज्ञातृधर्मकथांग, उपासकाध्ययनांग, अन्तकृतदशांग, अनुत्तरोपपादिक दशांग, प्रश्नव्याकरणांग, विपाकसूत्रांग व दृष्टिवादांग इन बारह अंगों तथा सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, बैनयिक, कृतिकर्म, दशकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार,
पट्टावली : ३५५