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इनके कालका प्रमाण पिण्डरूपसे दोसौ बीस वर्ष है। इनके स्वर्गस्थ होनेपर फिर भरतक्षेत्रमें कोई ग्यारह अंगोंके घारक नहीं रहे ॥१४८९॥
सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ये चार आचारांगके धारक हुए ॥१४९०॥
उक्त चारों भाचार्य आचारांगके सिवाय शेष ग्यारह अंग और चौदह पूर्वोक एकदेशके धारक थे। इनके कालका प्रमाण एकसो अठारह ११८ वर्ष है ।।१४९११॥ ___इनके स्वर्गस्थ होनेपर भरतक्षेत्रमें फिर कोई आचारांगके धारक नहीं हुए । गौतममुनि प्रभृतिके कालका प्रमाण छड्सो तेरासी वर्ष होता है ॥१४९२॥
धवलामें निषा श्रुपिहास __ को होदि ति सोहम्मिदचालणादो जादसदेहेण पंच-पंचसयंतेवासि-सहियभादुत्तिदयपरिवुदेण माणत्यंभदसणेणेव पणट्ठमाणेण वड्ढमाणविसोहिणा बढ़माणजिणिददसणे पणट्ठासंखेज्जभवन्जियगरुवकम्मेण जिणिदस्स तिपदाहिणं करिय पंचमुट्ठीय वैदिय हियएन जिणं झाइय पडिवण्णसंन्त्रमेण विसोहिबलेण अंतोमुहत्तस्स उप्पण्णासेसणिदलक्खणेण उचलद्धजिणवयणविणिग्गयबीजपदेण गोदमगोत्तेण बह्मणेण इंदभूदिणा आयार-सूदयदट्ठाण-समवाय-वियाहपपणत्तिणाहधम्म कहोवासयज्झयणतयहदस-अणुत्तरोक्वादियदस - मण्णवायरण-विवायसुत्त-दिद्विवादाणं सामाइय-चवीसत्यय-वंदणा-पडिक्कमण-वइणइय-किदियम्मदसवेयालि-उत्तरज्झयण कप्पववहार-कप्पाकप्प-महाकप्प- पुंडरीय- महापुंडरीयणिसिहियाणं चोद्दसपइण्णयाणमंगबज्झाणं च सावणमास-बहुल-पक्स-जुगादिपडिचयपुवदिवसे जेण रयणा कदा तेणिदभूदिभडारओ वड्ढमाणजिणतित्थगंथकत्तारो। उत्तं च
वासस्स पढममासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले। पाडिवदपुवदिवसे तित्थुप्पत्ती दु अभिजिम्मि ॥४०।।
एवं उत्तरतंतकत्तारपरूवणा कदा। संपहि उत्तरोत्तरतंतकत्तारपरूवर्ण कस्सामो। तं जहा—कत्तियमासकिण्णपक्खचोदस-रत्तीए पच्छिमभाए महदि महावीरे णिब्बुदे संते केवलणाणसंताण हरो गोदमसामी जादो। बारहवरसाणि केवलविहारेण विरिय मोदमसामिम्हि णिब्बुदे संते लोहज्जाइरिओ केवलमाणसंताणहरो जादो । बारहवासाणि केवलविहारेण विरिय लोहज्जभडारए णिन्दुदे संते जंबूभडारओ केवलणाणसंताणहो जादो। अट्टत्तीसवस्साणि केवलविहारेण विहरिय जंबूभडारए परिणिब्बुदे संते केवलणाणसंताणस्स वोच्छेदो जादो भरहस्खेतम्मि अत्यमिदि । एवं महावीरे ३५४ : तीर्थकर महावीर बोर सनकी प्राचार्यपरम्परा