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अब मूलसंघका पाठ वर्णित होता है।
श्रीमहावीरके निर्वाणके ४७० वर्ष बाद विक्रमादित्यका जन्म हुआ । विक्रमजन्मके दो वर्ष पूर्व सुभद्राचार्य और विक्रम राज्यके ४ वर्ष बाद भद्रबाहुस्वामी पट्टपर बैठे | भद्रबाहु स्वामीके शिष्य गुप्तिगुप्त हुए। इनके तीन नाम हैंगुप्तिगुप्त, अहंबली और विशाखाचार्य। इनके द्वारा निम्नलिखित चार संघ स्थापित हुए। ___नन्दीवृक्षके मूलसे वर्षायोग धारण करनेसे नन्दिसच हुए। इनके नेता माघनन्दी हुए अर्थात् इन्होंने ही नन्दीसंघ स्थापित किया । जिनसेननामक तृणतलमें वर्षायोग करनेसे एक ऋषिका नाम वृषभ पड़ा । इन्होंने ही वृषभसंघ स्थापित किया । जिन्होंने सिंहको गुफामें वर्षायोगको धारण किया, उनने सिंहसंघ स्थापित किया और जिसने देवदत्तानामको वेश्याके नगरमें वर्षायोग धारण किया, उसने देवसंघ स्थापित किया।
इसी प्रकार नन्दीसंघ पारिजातगच्छ बलात्कारगणमें नन्दी, चन्द्रकीति और भूषण नामके मुनि हुए।
उनमें श्रीवीरसे ४९२ वर्ष बाद, सुभद्राचार्यसे २४ वर्ष बाद, विक्रम-जन्मसे बाईस वर्ष बाद और विक्रम-राज्यसे ४ वर्ष बाद द्वितीय भद्रबाहु हुए।
सत्तरि-चउ-सद-युतो तिणकाला विक्कमो हबई जम्मो । अठ-वरस बाललीला मोडस-चासेहि भम्मिए देसे ॥१८॥ गणरस-वासे रज्जे कुणन्ति मिच्छोबदेससंयुत्तो।
चालीस-वरस जिणवर-धम्म पालीय सुरपयं लहियं ॥१९|| अर्थात् श्री वीरनिर्वाणके ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म हुआ। आठ वर्षों तक इन्होंने बाललीला की, सोलह वर्षों तक देश भ्रमण किया और ५६ वर्षों तक अन्यान्य धर्मों से निवृत्त होकर जिनधर्मका पालन किया ।
श्रुतघर-पट्टावली
शक सं० ५२२ __ अथ खलु सकलजगदुदय-करणोदित-निरतिशय-गुणास्पदीभूत-परमजिनशासन-सरस्समभिद्धित-भव्यजन-कमलविकसन-वितिमिर-गुण-किरण सहस्रमहोति महावीर-सवितरि परिनिवृते भगवत्परमर्षि-गौतम-गणधर साक्षाच्छिष्य लोहार्य-जम्बु- विष्णुदेवापराजित- गोवर्द्धन-भद्रबाहु-विशाख-प्रोष्ठिल-कृत्तिकार्य जयनागसिद्धार्थतिषेणबुद्धिलादि - गुरुपरम्परीणक्कमाभ्यागत- महापुरुषसन्ततिसमवद्योतितान्वय-भद्रबाहु-स्वामिना उज्जयन्यामष्टाङ्गमहानिमित्त-तत्त्वज्ञेन
पट्टाबली : ३४९