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________________ चार्य, २० वर्षों तक बुद्धिलिंगाचार्य, १४ वर्षों तक देवाचार्य और चौदह वर्षों तक धर्मसेनाचार्य हुए। अन्तिम-जिण-णिब्वाणं तिय-सय-पण चाल-बास जादेसु । एगादहंगधारिय पंच जणा मुणिवरा जादा ॥१०॥ नक्खत्तो जयपालग पंसार मा कस परिया। अठारह वीस-वासं गुणचाल चोद बत्तीसं ॥११॥ सद तेवीस वासे एगादह अङ्गधरा जादा ॥ श्रीवीरस्वामीके निर्वाणके ३४५ वर्ष बाद १२३ वर्षों तक ग्यारह अंगके धारी पाँच मुनिवर हुए-१८ वर्षों तक नक्षत्राचार्य, बीस वर्षों तक जयपालचार्य, ३९ वर्षों तक पाण्डवाचायं, १४ वर्षों तक ध्र बसेनाचार्य और ३२ वर्षों तक कंसाचार्य । इस प्रकार १२३ वर्षों में पाँच ग्यारह अंगके धारी हुए । वासं सत्तावण दिय दसंग नव-अंग अठ्ठ-धरा ॥१२॥ सुभद्धं च जसोभई भद्दबाहु कमेण च । लोहाचय्य मुणीसं च कहियं च जिणागमे ॥१३॥ छह अट्ठारहवासे तेवीस वावण (पणास) वास मुणिणाहं । दस-नव-अलैंग-धरा वास दुसदवीस सधेसु ॥१४॥ इसके बाद ९७ वर्षों तक दस अंग, नव अंग तथा आठ अंगोंके धारी क्रमशः ६ वर्षों तक सुभद्राचार्य, १८ वर्षों तक यशोभद्राचार्य, २३ वर्षों तक भद्रबाहु और ५० वर्षों तक लोहाचार्य मुनि हुए। इसके बाद ११८ वर्षों तक एकानधारी रहे। पंचसये पणसठे अन्तिम-जिण-समय-जादेसु । उप्पण्णा पंच जणा इयंगधारी मुणयन्वा ।।१५।। अहिबल्लि माघनन्दि य धरसेणं पुप्फयंत भूदबली । अडवीसं इगवीसं उगणीसं तीस वीस वास पुणो ॥१६॥ श्रीवीरनिर्वाणसे ५६५ वर्ष बाद एक अंगके धारी पाँच मुनि हुए। २८ वर्षों तक अहिबल्याचार्य, २१ वर्षों तक माधनन्द्याचार्य, उन्नोस वर्ष तक घरसेनाचार्य तीस वर्ष तक पुष्पदन्ताचार्य और २० वर्षों तक भूतबली आचार्य हुए। इग-सय-अठारवासे इयंग-धारी य मुणिवरा जादा । छ सय-तिरासिय वासे णिव्वणा अंगद्दित्ति कहिय जिणे ॥१७॥ एक सौ अठारह वर्षों तक एक अंगके धारी मुनि हुए । इस प्रकार ६८३ वर्षों तक अंगके धारी मुनि हुए। ३४८ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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