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________________ भूमि प्रदान की थी। इस भूमिको आयसे साधुओं तथा धार्मिकोंको भोजन एवं आवास दिया जाता था। ___ नगरखण्डके सामन्त लोकगाबुण्डने सन् १९७१ ई०में एक जैन मन्दिरका निर्माण कराया था और उसकी अष्टप्रकारी पूजाके लिए मूलसंघ काणू रमण, तिन्तिणीगच्छके मुनिचन्द्रदेवके शिष्य भानुकोति सिद्धान्तदेवको भूमि प्रदान की थी। १३वीं शताब्दीके अन्तिम चरणमें होनेवाला कुचीराजाका नाम भी उल्लेखनीय है । यह पानसेन भट्टारकका शिष्य था। जैनधर्मके संरक्षक और उन्नतिकारकोंमें वीरमार्तण्ड चामुण्डरायका नाम भी उल्लेखनीय है। विष्णुवर्धनके सेनापति बोप्पने भी जैन शासनके उत्थानमें योगदान दिया है। ई० सन् की १२वीं शताब्दीमें सेनापति हल्लने भी मन्दिर और मूर्तियोंका निर्माण कराया है। राजा नरसिंहके सेनापति शान्तियण और इनके पुत्र वल्लाल द्वितीयके सेनापति रेचमय्यकी गणना भी जैनसंस्कृतिके आश्रयदाताओंमें की जाती है । रेचमय्यने आरसीयकेरेमें सहस्रकूट चैत्यालयका निर्माण कराया था। बल्लाल द्वित्तीयके मन्त्री नागदेवने श्रवणबेलगोलाके पार्श्वदेवके सामने एक रंगशाला तथा पाषाणका चबूतरा बनवाया था। ___इस प्रकार दिगम्बराचार्योंने दक्षिण भारतमें सभी राजवंशोंको प्रभावित किया और अनेक राजवंशोंको जैनधर्मका अनुयायी बनाया। उत्तरमें मौर्य, लिच्छवि, ज्ञातृवंश, चेदिवंश आदिके साथ गुर्जरेश्वर कुमारपाल आदि भी उल्लेख्य हैं। आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३४५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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