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चतुर्थ परिच्छेद
पट्टावलियाँ
नन्दीस - बलात्कारगण - सरस्वतीगच्छकी प्राकृत-पट्टाचली
श्रीत्रैलोक्याधिपं नत्वा स्मृत्वा सद्गुरु-भारतीम् । वक्ष्ये पट्टावली रम्यां मूलसंघगणाधिपाम् ॥ १॥ श्रीमूलसंघप्रवरे नन्द्याम्नाये मनोहरे । बलात्कारगणोत्तंसे गच्छे सारस्वतीयके ||२|| कुन्दकुन्दान्वये श्रेष्ठं उत्पन्नं श्रीगणाधिपम् । तमेवात्र प्रवक्ष्यामि श्रूयतां सज्जना जनाः ||३||
मैं तीनों लोकके स्वामी श्रीजिनेन्द्र भगवानको नमस्कार कर तथा सद्गुरुकी वाणीका स्मरण कर मूलसंघगणकी पट्टावलीको कहता हूँ। श्रीमूलसके नन्दीनामक सुन्दर आम्नायमें बलात्कारगणके सरस्वतीगच्छके कुन्दकुन्दनामक वंश में जो गणोंके अधिपत्ति उत्पन्न हुए, उनका वर्णन करता हूँ, सज्जन लोग सुनें ।
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