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________________ अनेक कार्य किये हैं । अंगडीसे प्राप्त अभिलेखमें बिनयादित्य होयसलके कार्योंका ज्ञान प्राप्त होता है। श्रवणबेलगोलाके गंधवारण वसतिके अभिलेखसे अवगत होता है कि विनयादित्यने सरोवरों और मन्दिरोंका निर्माण कराया था। यह विनयादित्य चालुक्यवंशके विक्रमादित्य षष्ठका सामन्त था। इसकी उपाधि 'सम्यक्त्वचूड़ामणि' थी। इसने जीर्णोद्धारके साथ अनेक मन्दिरोंका निर्माण कराया था। होयसल नरेशोंमें विष्णुवर्धन भी जैन शासनका प्रभावक हुआ है । शासनकी उन्नति करनेवाले सामन्तोंमें राष्ट्रकूट सामन्त लोकादित्यका महत्त्वपूर्ण स्थान है । इसका सासर राम संवत्की सी शतान्या है। यह दीया पुत्र था और राष्ट्रकूटनरेश कृष्ण द्वितीय अकालवर्षके शासनके अन्तर्गत बनवास देशके बंकापुरका शासक था। दक्षिण भारतमें जैनधर्मको सुदृढ़ बनाने में जिनदत्तरायका भी हाथ है। इसने जिनदेवके अभिषेकके लिए कुम्भसिकेपुर गाँव प्रदान किया था। तोलापुरुष विक्रम शान्तरने सन् ८५७ ई में कुन्दकुन्दान्वयके मौनीसिद्धान्त भट्टारकके लिए वसतिका निर्माण कराया था। यह वही विक्रम शान्तर है, जिसने हम्मचमें गुड्डद वसतिका निर्माण कराया था और उसे बाहुबलिको भेंट कर दिया था । भुजबल शान्तरने अपनो राजधानी पोम्बुच्चमें भुजबल शान्तर जिनालयका निर्माण कराया था और अपने गुरु कनकनन्दिदेवको हरबरि ग्राम प्रदान किया था। उसका भाई नन्नि शान्तर भी जिनचरणोंका पूजक था । वीर शान्तरके मन्त्री नगुलरसने भी अजितसेन पण्डितदेवके नामपर एक वसतिका शिलान्यास कराया था। यह नयी वसति राजधानी पोम्बुच्चमें पंचवसत्तिके सामने बनवायी गयी थी । भुजबल गंग पेरम्माडि बर्मदेव ( सन् १११५ ई०) मुभिचन्द्रका शिष्य था और उसका पुत्र नन्नियगंग ( सन् ११२२ ई०) प्रभाचन्द्र सिद्धान्तका शिष्य था। ११वीं शती में कोंगालवोंने जैनधर्मकी सुरक्षा और अभिवृद्धिके लिए अनेक कार्य किये हैं। सन् १०५८ ई में राजेन्द्र कोंगालवने अपने पिताके द्वारा निर्मापित वसत्तिको भमि प्रदान की थी। राजेन्द्र कोंगालवका गुरु मलसंघ काणरगण और तरिगणगच्छका गण्डविमुक्त सिद्धान्तदेव था। राजेन्द्र ने अपने गुरुको भूमि प्रदान की थी। इस वंशके राजाओंने सत्यवाक्य जिनालयका निर्माण कराया था और उसके लिए प्रभाचन्द्र सिद्धान्तको गाँव प्रदान किया था। कालनने नेमिस्वर वसतिका निर्माण कराकर उसके निमित्त अपने गुरु कुमारकीति विद्यके शिष्य पुन्नागवृक्ष मूलगणके महामण्डलाचार्य विजयकोतिको ३४४ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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