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________________ सुन्दर नगरका निर्माण किया, जन्मके दश अतिशयोंको काव्यका रूप देनेका प्रयास किया है । और नायकमें अपूर्व सामर्थ्यका चित्रण करते हुए कहा है कि मार्ग चलनेके कारण लांत न होनेपर भी रुढ़िवश उन्होंने स्नान किया और मार्गका वेश बदला' | इस प्रकार कविने नायकको पौराणिकतासे ऊपर उठानेकी चेष्टा की है किन्तु तीर्थकरत्वकी प्रतिष्ठा बनाये रखने के कारण पूर्णतया उस मीमाका अतिक्रममा नहीं हो सका है ! इस महाकाव्यमें इतिवृत्त, वस्तुव्यापार, संवाद और भावाभिव्यञ्जन इन चारोंका समन्वित रूप पाया जाता है । प्रकृति-चित्रणमें भी कविको अपुर्व सफलता प्राप्त हुई है। यहाँ उदाहरणार्थ गंगाका चित्रण प्रस्तुत किया जाता है तापापनोदाय सदैव भूत्रयोविहारखेदादिव पाण्डुरशुतिम् । कीर्तेर्वयस्थामिव भतुरप्रतो विलोक्य गङ्गां बहु मेनिरे नराः ।।५।६८ ।। शम्भोजराजूटदरीविवर्तनप्रवृत्तसंस्कार इव क्षितावपि । यस्याः प्रवाहः पयसां प्रवर्तते सुदुस्तरावतंतरङ्गभङ्गरः ॥९१६९ ।। सभी लोग अपने समक्ष गंगानदीको देखकर बहुत प्रसन्न हुए। यह नदी जगल-संतापको दूर करनेके लिये त्रिभुवनमें विहार करनेके खेदसे ही मानों श्वेत हो रही है। यह नदो स्वामी धर्मनाथकी त्रिभुवन-व्यापिनी कोतिकी सहेलोसो जान पड़ती है। जिस गंगानदीके जलका प्रवाह पृथ्वी में भी अत्यन्त दुस्तर आवों और तरंगोंसे कुटिल होकर चलता है, मानों महादेवजोके जटाजूटरूपी गुफाओंमें संचार करते रहने के कारण उसे वैसा संस्कार ही पड़ गया है। वह गंगा निकटवर्ती बनोंको वायुसे उठती हुई तरंगों द्वारा फैलाधे हुए फैनसे चिह्नित है। अतः ऐसी जान पड़ती है मानों हिमालयरूपी नागराजके द्वारा छोड़ी हुई वांचुली ही हो। इस प्रकार कविने गंगाके श्वेत जलका चित्रण विभिन्न उत्प्रेक्षाओं द्वारा सम्पन्न किया है। उसे रत्नसमूहोंसे खचित पृथ्वीको करधनी बताया है अथवा आकाशसे गिरी हुई मोतियोंकी माला ही बताया है। इसी प्रकार कविने सूर्यास्त, चन्द्रोदय, रजनी, बन आदिका भी जोवन्त चित्रण किया है । कवि रानी सुव्रताके ओष्ठका चित्रण करता हुआ कहता है प्रवाल-बिम्बीफल-विद्रुमादयः समा बभूवुः प्रभयैव केवलम् । रसेन तस्यास्त्वधरस्य निश्चितं जगाम पीयूषरसोऽपि शिष्यताम् ॥२।५।।। १, धर्मशर्माभ्युदय ११।४, ११५ । आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : २१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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