SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रचनाएँ महाकवि हरिचन्द्र की दो रचनाएं उपलब्ध हैं१. धर्मशर्माभ्युदय २. जीवन्धरचम्पू कुछ विद्वान 'जीबन्धरचम्पू' को 'धर्मशर्माभ्युदय के कर्त्ता हरिचन्द्रकी कृति नहीं मानते हैं. पर यह ठीक नहीं है । यतः इन दोनों रचनाओं में भावों, कल्पनाओं और शब्दोंको दृष्टिसे बहुत साम्य है । जीवन्धरचम्पूमें पुण्यपुरुष जीवन्धरका चरित वर्णित है । कथावस्तु ११ लम्भों विभक है तथा कथावस्तुका आधार वादीभसिंहकी गद्यचिन्तामणि एवं क्षत्रचूड़ामणि ग्रन्थ हैं । यों तो इस काव्यपर उत्तरपुराणका भी प्रभाव है, पर कथावस्तुका मूलस्रोत उक्त काव्यग्रन्थ ही हैं। गद्य-पद्यमयी यह रचना काव्यगुणोंसे परिपूर्ण है । द्राक्षारस के समान मधुर काव्य-रस प्रत्येक व्यक्तिको प्रभावित करता है । धर्मशर्माभ्युदय इस महाकाव्य में १५ वें तीर्थंकर धर्मनाथका चरित वर्णित है। इसकी कथावस्तु २१ सर्गो में विभाजित है । धर्मं शर्म - धर्म और शान्ति के अभ्युदयवर्णनका लक्ष्य होने से कविने प्रस्तुत महाकाव्यका यह नामकरण किया है। कविने इस महाकाव्यको कथावस्तु उत्तरपुराणसे ग्रहण की है। इसमें महाकाव्योचित धर्मका समावेश करनेके लिये स्वयंवर, विन्ध्याचल, षड्ऋतु, पुष्पावचय, जलक्रीड़ा, सन्ध्या, चन्द्रोदय एवं रतिक्रीड़ाके वर्णन भी प्रस्तुत किये हैं | उत्तरपुराण में धर्मनाथके पिताका नाम भानु बताया है, पर धर्मशर्माभ्युदयमें महासेन । माताका नाम भी सुप्रभा के स्थान पर सुव्रता आया है । कविने कथावस्तुको पूर्वभवावलोके निरूपणसे आरम्भ न कर वर्तमान जीवन से प्रारम्भ की हैं। रघुवंशके दिलीपके समान महासेन भी पुत्र चिन्तासे आक्रान्त हैं। वे सोचते हैं कि जिसने जीवनमें पुत्रस्पर्शका अलोकिक आनन्द प्राप्त नहीं किया, उसका जन्म धारण व्यर्थ है । अतः महासेन नगर के बाहरी उद्यानमें पधारे हुए ऋद्धिवारी प्रचेतानामक मुनिके निकट पहुँचते हैं। वे उनके समक्ष पुत्र- चिन्ता व्यक्त करते हैं। प्रसंगवश सुनिराज धर्मनाथकी पूर्वभवाचली बतलाते हैं और छह महीने के उपरान्त तीर्थंकर पुत्र होनेकी भविष्यवाणी करते हैं । कविने धीरोदात्त नायक में काव्योचित गुणोंका समावेश करनेपर भी पौराणिकता की रक्षा की है । वनमें तीर्थंकर धर्मनाथके पहुंचते हो, षड् ऋतुओंके फल-पुष्प एकसाथ विकसित हो जाते हैं। धर्मनाथ के निवासके लिये कुवेरने २० : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy