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________________ कल्लुगुड्डके इस अभिलेखमें सिंहनन्दि द्वारा दिये गये राज्यका विस्तार भी अकित है। दलिगने राज्य प्राप्त कर जैनधर्म और जैनसंस्कृति के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये। इसने मण्डलिनामक प्रमुख स्थानपर एक भव्य जिनालयका निर्माण कराया, जो काष्ठ द्वारा निर्मित था। दडिनका पुत्र लघुमाधव और लघुमाधवका पुत्र हरिवर्मा हुआ । हरिवर्माने जेनशासनकी उन्नसिके लिए अनेक कार्य किये । इसी वंशमें राजा सङ्गाल बायका उत्तराधिकारी उसका पुत्र अविनीत हुआ। 'नोड़ मंगल-दानपत्र'से, जो उसने अपने राज्यके प्रथम वर्षमें अंकित कराया था, ज्ञात होता है कि उसने अपने परमगुरु अर्हत् विजयकीतिके उपदेशसे मूलसंघके चन्द्रनन्दि आदि द्वारा प्रतिष्ठापित उyर जिनालयको वेन्नेलकरणि गाँव और पेरूर एवानि अडिगल जिनालयको बाहरी चुगीका चौथाई कार्षापण दिया। श्री लुईस राइसने इस ताम्रपत्रका समय ४२५ ई० निश्चित किया है। ___ मर्कराके ताम्रपत्रसे अवगत होता है कि अविनीत जैनधर्मका अनुयायी था। अविनीतके पुत्र दुविनीतने भी जैन शासनके विकासमें सहयोग प्रदान किया । इसने कांगलि नामक स्थानपर चेन्नपार्श्वबस्ति नामक जिनालयका निर्माण कराया था। दुविनीतके पुत्र मुक्कर या मोक्करने मोक्करवसित्त नामक जिनालयका निर्माण कराया था । मोक्करके पश्चात् श्रीविक्रम राजा हुआ और उसके भूविक्रम और शिवमार ये दो पुत्र हुए। शिवमारने श्रीचन्द्रसेनाचार्यको जिनमन्दिरके लिये एक गाँव प्रदान किया था। श्रीपुरुषके पुत्र शिवमार द्वितीयने श्रवणबेलगोलाकी छोटी पहाड़ीपर चन्द्रनाथवसतिका निर्माण कराया था। मैसूर जिलेके हेगड़े देवन ताल्लुकेके हेब्बल गुप्पेके आजनेय मन्दिरके निकटसे प्राप्त अभिलेखमें लिखा है कि श्री नरसिंगेरे अपर दुग्गमारने कोयलवसत्तिको भूमि प्रदान की । गंगवंशमें मरूलका सौतेला भाई मारसिंह भी शासनप्रभावनाकी दृष्टिसे उल्लेखनीय है। इसका राज्यकाल ई० सन् ९६१-९७४ है। श्रवणबेलगोलाके अभिलेखसंख्या ३८से विदित होता है कि मारसिंहने जैनधर्मका अनुपम उद्योत किया और भक्तिके अनेक कार्य करते हुए मृत्युसे एक वर्ष पूर्व उसने राज्यका परित्याग किया और उदासीन श्रावकके रूपमें जीवन व्यतीत किया । अन्तमें तीन दिनके संल्लेखनाव्रत द्वारा वंकापुरके अपने गुरु अजितसेन भट्टारकके चरणोंमें समाधिमरण ग्रहण किया । मारसिंहने अनेक जैन विद्वानोंका संरक्षण किया। १. संक्षिप्त जैन इतिहास, भाग ३, स्वण्ट २, पृ. ४७ । ३४२ : तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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