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________________ दीक्षा ग्रहण कर दक्षिणकी ओर विहार किया। भद्रबाहुस्वामीने अपना अन्तिम समय जानकर श्रमणबेलगोलाके कटवन पर्वतपर समाधिमरण ग्रहण किया। चन्द्रगुप्तने भद्रबाहुस्वामीके साथ रहकर उनकी अन्तिम अवस्था तक सेवा को और वर्षों तक मुनिसंघका संचालन किया। मौर्यवंशके अहिंसक होनेका एक कारण चन्द्रगुप्तका जैन दीक्षा ग्रहण करना भी है। अशोक अपने जीवनके पूर्वार्द्ध में जैन था और उत्तरार्द्ध में वह बौद्धधर्म में दीक्षित हुआ। सम्राट सम्पत्ति ने तो जैन शासनके अभ्युत्थानक हेतु अनेक समस एवं गदालोमा निर्माण कराया । चेदिवशके सम्राट एल खारवेलने जैन शासनकी उन्नतिके लिए अनेक कार्य किये। उसने मगधपर आक्रमण कर बहुमूल्य रत्नादिकके साथ कलिंग जिनकी वह प्रसिद्ध मूर्ति भी उपलब्ध की, जिसे नन्दराज कलिंगसे ले आये थे। खारवेलने कुमारीपर्वतपर जैन मुनि और पण्डितगणोंका सम्मेलन बुलाया तथा जेनागमको संशोधित कर नये रूपमें निबद्ध करनेका प्रयास किया । जैनसंघने उसे भिक्षुराज, धर्मराज और खेमराजको उपाधियोंसे विभूषित किया । उसने अपना अन्तिम जीवन कुमारीपर्वतपर स्थित्त अर्हत् मन्दिरमें भक्ति और धर्म ध्यानमें संलग्न किया 1 उसने जैन मुनियोंके लिए गुफाएँ एवं चत्य बनवाये। खारवेल द्वारा उत्कीणित एक अभिलेख उदयगिरि पर्वतकी गुफामें ई० पू० १७० का मिलता है ! खारवेलका स्वर्गवास ई० पू० १५२में हुआ है। ई० सन्की द्वितीय शतोसे पंचमी शती तक गंगवंशके राजाओंने जैन शासनकी उन्नतिमें योगदान दिया है। ई. सन्की दूसरी शताब्दीके लगभग इस वंशके दो राजकुमार दक्षिण आये। उनके नाम दडिग और माधव थे। पेरूर नामक स्थान में इनकी भेंट आचार्य सिंहनन्दिसे हुई। सिंहनन्दिने उनदोनोंको शासन-कार्यकी शिक्षा दी । एक पाषाण-स्तम्भ साम्राज्यदेवीके प्रवेशको रोक रहा था । अतः सिंहनन्दिको आज्ञासे माधवने उसे काट डाला । आचार्य सिंहनन्दिने उन्हें राज्यका शासक बनाते हुए उपदेश दिया-"यदि तुम अपने बचनको पूरा न करोगे, या जिन शासनको साहाय्य दोगे, दूसरोंकी स्त्रियांका अपहरण करोगे, मद्य-मांसका सेवन करोगे, या नीचोंकी संगतिमें रहोगे, आवश्यक होनेपर भी दूसरोंको अपना धन नहीं दोगे और यदि युद्धके मैदानमें पीठ दिखाओगे, तो तुम्हारा बंश नष्ट हो जायेगा"।' १. अन्तु ममस्त-राज्यमं..."किडुगु कुलक्रमम् ।-जैन शिलालेखसंग्रह, द्वितीय भाग, ___ अभिलेखसं० २७७, कल्लूगुड्डका लेख, पृ० ४१३ । आचायतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३४१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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