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________________ निर्जरा है। जिन ध्यान आदि साधनोंसे मुक्ति प्राप्ति होती है वे भाव भावमोक्ष हैं और कर्मपुद्गलोंका आत्मासे छूट जाना द्रव्यमोक्ष है। इस प्रकार : आस्रव, बन्ध, संवर. निर्जरा और मोक्ष थे पांच तत्त्व भावरूपमें जीवके पर्याय हैं और द्रव्यरूपमें पुद्गलके। जिनके भेदविज्ञानसे कैवल्यकी प्राप्ति होती है, उन आत्मा और में से सातों न समाहित हो जाते हैं ! वस्तुतः जिस 'पर' की परतन्त्रताको दूर करना है और जिस 'स्व'को स्वतन्त्र होना है, उस 'स्व' और 'पर'के ज्ञानमें तत्त्वज्ञानको पूर्णता हो जाती है। अध्यात्मविषयक देन ___ जोइन्दुने आत्मद्रव्यके विशेष विवेचनक्रममें आत्माके तीन प्रकार बतलाये हैं- बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। जो शरीर आदि परद्रव्योंको अपना रूप मानकर उनकी हो प्रिय भोग-सामग्रीमें आसक्त रहता है वह बहिर्मुख जीव बहिरात्मा है । जिन्हें स्वपरविवेक या भेदविज्ञान उत्पन्न हो गया है, जिनकी शरीर आदि बाह्य पदार्थोंसे आत्मदृष्टि हट गयी है वे सम्यग्दृष्टि अन्तरात्मा हैं। जो समस्त कर्ममलकलंकोंसे रहित होकर शुद्ध चिन्मात्रस्वरूपमें मग्न हैं वे परमात्मा हैं। यह संसारी आत्मा अपने स्वरूपका यथार्थ परिज्ञान कर अन्तर्दृष्टि हो क्रमशः परमात्मा बन जाता है। ___ आचार्योने चारित्र-साधनाका मुख्याधार जीवतत्वके स्वरूप और उसके समान अधिकारकी मर्यादाका तत्त्वज्ञान ही माना है। जब हम यह अनुभव करते हैं कि जगतमें वर्तमान सभी आत्माएँ अखण्ड और मूलतः एक-एक स्वतत्र समान शक्तिवाले दव्य हैं। जिस प्रकार हमें अपनी हिंसा रुचिकर नहीं है, उसी प्रकार अन्य आत्माओंको भी नहीं है। अतएव सर्वात्मसमत्वकी भावना ही अहिंसाकी साधनाका मुख्य आधार है। आत्मसमानाधिकरणका ज्ञान और उसको जीवनमें उतारनेकी दृढ़ निष्ठा ही सर्वोदयकी भूमिका है और इसी भूमिकासे चारित्रका विकास होता है। ___ अहिंसा, संयम, तपकी साधनाएं आत्मशोधनका कारण बनती हैं । सम्यक श्रद्धा, सम्यक्सान और सम्यक्चारित्र ही आत्मस्वातंत्र्यकी प्राप्तिमें कारण है। प्रबुद्धाचार्योने तत्त्वज्ञान, प्रमाणवाद, पुराण, काव्य, व्याकरण, ज्योतिष, आयुर्वेद आदि विषयोंका संवर्द्धन किया है। यह सत्य है कि जैसी मौलिक प्रतिमा श्रुत्तधर और सारस्वताचार्यों में प्राप्त होती है। वैसी प्रबुद्धाचार्यों में नहीं। तो भी जिनसेन प्रथम, गुणभद्र, पाल्यकीर्ति, वीरनन्दि, माणिक्यनन्दि, प्रभाचन्द्र, महासेन, हरिषेण, सोमदेव, वसुनन्दि, रामसेन, नयसेन, माधनन्दि, आदि आचार्योंने श्रुतकी अपूर्व साधना की है। इन्होंने चारों अनुयोगोंके विषयोंका ३३४ : सीकर महावीर और उनको आचार्य परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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