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________________ ५. सूक्ष्म-जो सूक्ष्म होने के कारण इन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण न किये जा सकते हों, वे कर्मवर्गणा आदि सूक्ष्म स्कन्ध हैं। ६. अतिसूक्ष्म-कर्मवर्गणासे भी छोटे . व्यणुक स्कन्ध तक अतिसूक्ष्म है। समान्यतः पुद्गलके स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु ये चार विभाग हैं। अनन्तान्त परमाणुओंसे स्कन्ध बनता है। उससे आधा स्कन्धदेश और स्कन्धदेशका आधा स्कन्धप्रदेश कहलाता है। परमाणु सर्वतः अविभागी होता है। शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, प्रकाश, उद्योत और गर्मी आदि पुद्गलद्रव्यके ही पर्याय हैं । अनन्त आकाशमें जीव और पुद्गलोंका गमन जिस द्रव्यके कारण होता है गह धर्मद्रव्य है। यहाँ मद्रिन्स एणयका पर्यायवाची नहीं । यह असंख्यातप्रदेशी द्रव्य है । जीव और पुद्गल स्वयं गतिस्वभाववाले हैं। अतः इनके गमन करनेमें जो साधारण कारण होता है वह धर्मद्रव्य है। यह किसी जीव या पुद्गलको प्रेरणा करके नहीं चलाता, किन्तु जो स्वयं गति कर रहा है उसे माध्यम बनकर सहारा देता है । इसका अस्तित्व लोकके भीतर तो है ही, पर लोकसीमाओंपर नियंत्रकके रूपमें है। धर्मद्रब्यके कारण ही समस्त जीव और पुद्गल अपनी यात्रा उसी सीमा तक समाप्त करनेको विवश हैं। उससे आगे नहीं जा सकते। ___ जिस प्रकार गतिके लिए एक साधारण कारण धर्मद्रव्य अपेक्षित है, उसो तरह जीव एवं पुद्गलोंकी स्थितिके लिए एक साधारण कारण अधर्मद्रव्य अपेक्षित है । यह लोकाकाशके बराबर है । रूप, रस, गन्ध, स्पर्श और शब्दसे रहित, अमूर्तिक, निष्क्रिय और उत्पाद-व्ययके परिणमनसे युक्त नित्य है। अपने स्वाभाविक संतुलन रखनेवाले अनन्त अगुरुलघुगुणोंसे उत्पाद-व्यय करता हुमा यह स्थितशील जीव-पुद्गलोंको स्थितिमें साधारण कारण होता है। धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य लोफ और अलोक विभागके सद्भावसूचक प्रमाण हैं। समस्त जीव, अजीव आदि द्रव्योंको जो अवगाह देता है अर्थात् जिसमें ये समस्त द्रव्य युगपत् अवकाश पाते हैं, वह आकाशद्रव्य है । आकाश अनन्तप्रदेशी है। इसके मध्य भागमें चौदह राजू ऊंचा पुरुषाकार लोक स्थित है, जिसके कारण आकाश लोकाकाश और अलोकाकाशके रूपमें विभाजित हो जाता है। लोकाकाश असंख्यातप्रदेशोंमें है। शेष अनन्त प्रदेशोंमें अलोक है, जहाँ केवल आकाश ही आकाना है। यह निष्क्रिय है और रूप, रस, गन्ध, स्पर्श एवं शब्द आदिसे रहित होने के कारण अमूर्तिक है। ३३२ : तीर्घकर महावीर और उनको आचार्यपरम्परा .
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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