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________________ 1 पुरुषाद्वैत, शब्दाद्वैत, विज्ञानाद्वैत चित्राद्वैत चार्वाक, बौद्ध, सेश्वरसांख्य, निरीश्वरसांख्य, नैयायिक, वैशेषिक, भाट्ट आदिके मंतव्योंकी समीक्षा की हैं। प्रमेयोंका स्पष्टीकरण बहुत ही सुन्दर रूपमें किया गया है । द्रव्यगुण-पर्यायविषयक बेन द्रव्यविवेचनके क्षेत्रमें श्रुतधराचार्य कुन्दकुन्दने जो मान्यताएँ प्रतिष्ठित की थों, उनका विस्तार एलाचार्य, अमृतचन्द्र, अमितगति, वीरसेन, जोइन्दु आदि आचार्यों ने किया है । जीब, पुद्गल, धर्म, अधर्मं, आकाश और काल इन छह द्रव्यों और उनके गुण- पर्यायोंका निरूपण किया गया है । जीवका चैतन्य आसा - धारण गुण है । बाह्य और अभ्यन्तर कारणोंसे इस चैतन्यके ज्ञान और दर्शन रूपसे दो प्रकारके परिणमन होते हैं। जिस समय चैतन्य 'स्व' से भिन्न किसी ज्ञेयको जानता है, उस समय वह ज्ञान कहलाता है । और जब चैतन्यमात्र चैतन्याकार रहता है तब वह दर्शन कहलाता है। जीवमें ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि गुण पाये जाते हैं । पुद्गलद्रव्य में रूप, रस, गन्ध और स्पर्श गुण रहते है । जो द्रव्य स्कन्ध अवस्था में पूरण अर्थात् अन्य अन्य परमाणुओं से मिलन और गलन अर्थात् कुछ परमाणुओंका बिछुड़ना, इस तरह उपचय और अपचयको प्राप्त होता है वह पुगल कहलाता है । समस्त दृश्य जगत इस पुद्गलका ही विस्तार है । मूल दृष्टिसे पुद्गलद्रव्य परमाणुरूप ही है । अनेक परमाणुओंसे मिलकर जो स्कन्ध बनता है वह संयुक्तद्रव्य है । स्कन्धों का बनाव और मिटाव परमाणुओंकी बन्धशक्ति और भेदशक्तिके करण होता है । I प्रत्येक परमाणुमें स्वभावसे एक रस, एक रूप, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं । परमाणु अवस्था ही पुद्गलकी स्वाभाविक पर्याय और स्कन्ध अवस्था विभाव पर्याय है । परमाणु परमातिसूक्ष्म है, अविभागी है, शब्दका कारण होकर भी स्वयं अशब्द है । शाश्वत होकर भी उत्पाद और व्यय युक्त है । स्कन्ध अपने परिणमनकी अपेक्षासे छह प्रकारका है - १. बादर-बादरजो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होने पर स्वयं न मिल सकें, वे लकड़ी, पत्थर, पर्वत, पृथ्वी आदि बादर - बादर स्कन्ध कहलाते हैं । २. बादर - जो स्कन्ध छिन्न-भिन्न होने पर स्वयं आपस में मिल जायें, वे बादर स्कन्ध हैं, जैसे—दूध, घी, तेल, पानी आदि । ३. बादर-सूक्ष्म --जो स्कन्ध दिखने में तो स्थूल हों, लेकिन छेदने भेदने और ग्रहण करने में न आवें, वे छाया, प्रकाश, अन्धकार, चांदनी आदि बादरसूक्ष्म स्कन्ध हैं । ४. सूक्ष्म बादर -- जो सूक्ष्म होकरके भी स्थूलरूप में दिखें, वे पाँचों इन्द्रियोंके विषय - स्पर्श, रस, गन्ध, वर्णं और शब्द सूक्ष्म- बादर स्कन्ध हैं । आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३३१
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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