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________________ उपसंहार अंग और पूर्व-साहित्यको आचार्योंकी देन तीर्थंकर महावीरकी आचार्यपरम्परा गौतम गणघरसे आरम्भ होती है, और यह परम्परा अंगसाहित्य और पूर्वसाहित्यका निर्माण, संवद्धन एवं पोषण करती चली आ रही है। यों तो अंग और पूर्व-साहित्यको परम्परा आदितीर्थकर भगवान ऋषभदेवके समयसे लेकर अन्तिम तीर्थकर महावीरके काल तक अनवच्छिन्नरूपसे चली आयी है। यहाँ यह ध्यातव्य है कि अंगसाहित्यका विषय-प्रथन प्रत्येक तीर्थकरके समयमें सिद्धान्तोंके समान रहनेपर भी अपने युगानुसार होता है। स्पष्टीकरणके लिए यों कहा जा सकता है कि उपासकाध्ययनमें प्रत्येक तीर्थकरके समयमें उपासकोंकी ऋद्धिविशेष, बोधिलाभ, सम्यक्त्वशुद्धि, संल्लेखना, स्वर्गगमन, मनुष्यजन्म, संयम-धारण, मोक्षप्राप्ति आदिका निरूपण किया जाता है। पर प्रत्येक तीर्थंकरके काल में उपासकोंको ऋद्धि, स्वर्गगमन आदि विषयों में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। यतः उपासकोंकी जेसी ऋद्धि, व्रतोवास एवं शोधिलाभकी स्थिति ऋषभदेवके समयमें थी, बेसी महावीरके समयमें नहीं रही होगी। इसी प्रकार अन्तःकृतदशांगमें प्रत्येक तीर्थकरके समयमें होनेवाले अन्तःकृतकेवलियोंका जीवन आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३२३
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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