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कुंगवेल
कुंगवेल मौलिक साहित्य सर्जक होने के साथ अनुवादक भी हैं। इन्होंने गुणाढयको बृहद्कथा में वर्णित कौशाम्बी नरेश उदयनकी जीवनी और उसके पराक्रमपूर्ण कार्योंका तमिलमें अनुवाद किया है । यह ग्रन्थ साहित्यिक सौन्दर्य और काव्यप्रतिभाका खजाना है। तमिल टीकाकारोंने व्याकरण सम्बन्धी एवं मुहावरेदार भाषाका उदाहरण इसी काव्यसे प्रस्तुत किया है ।
तमिल साहित्य में जीवक चिन्तामणि, शिल्प्पडिकारं, मणिमेखले, वलेयापति और कुण्डलकेशी ये पांच महाकाव्य माने जाते हैं। इनमें जीवकचिन्तामणि, शिल्प्पडिकार और वलेयापति ये तोन जैनकवियां द्वारा संवत महाकाव्य है और शेष दो बौद्ध कवियों द्वारा रचित हैं । इन पाँच महाकाव्योंमेंसे इस समय तोन ही महाकाव्य उपलब्ध हैं । वलैयापति और कुण्डलकेशी दोनों अप्राप्त हैं ।
तमिल साहित्य में चूड़ामणि, नीलकेशी, यशोधरकाव्य, उदयनकुमार काव्य और नागकुमार काव्य ये पाँच लघुकाव्य हैं। ये पाँचों ही लघुकाव्य जैनाचार्यों द्वारा निर्मित हैं । नीलकेशी के रचयिता दार्शनिक जैन कवि हैं । इसमें १० सर्ग और ८९४ पद्य हैं । कथाकी नायिका नीलकेशी एक देवी है, जो एक स्थान से दूसरे स्थानमें भ्रमण करती रहती है और धार्मिक उपदेशकोंसे मिलकर उन्हें दार्शनिक चर्चाओंमें संलग्न रखती है और अन्त में उन्हें शास्त्रार्थ में परास्त करती है । प्रथमसर्ग में मुनिचन्द्र नामक जैनसाधु द्वारा नीलकेशीको दी गयी जैनधर्मको शिक्षाओंका वर्णन है । द्वित्तीय सर्गसे पञ्चम सर्गतक बौद्धदर्शनके विभिन्न व्याख्याताओंके साथ नीलकेशीके वाद-विवादका वर्णन आया है । शेष पांच सर्गो में नीलकेशीका आजीवकों, सांख्यों, वैशेषिकों, वैदिक धर्मानुयायियों और प्रकृतवादियोंके साथ शास्त्रार्थका कथन आया है। यह एक तार्किक ग्रन्थ है । इसमें भौतिकवादके विरुद्ध आध्यात्मवादकी प्रतिष्ठा की गयी है। इस ग्रन्थपर वामनमुनि द्वारा विरचित समयदिवाकर नामकी एक सुन्दर टोका है ।
यशोधरकाव्य के रचयिताका नाम अज्ञात है । इसमें अहिंसा धर्मका विशदनिरूपण तो है ही साथ ही वैदिक क्रियाकाण्डका समालोचन भी किया गया है । उदयनकुमार काव्य के रचयिता भी अज्ञात हैं। नागकुमारकाव्य अभीतक अप्रकाशित है ।
जेनकवियोंने कुछ कविता संग्रह भी लिखे हैं । इनमें पत्तुपाट्ट, पुरनानूरु, अहनानूरु, नट्रीणाई, कुरूंतो गई आदि प्रमुख हैं । इनके अतिरिक्त जिनेन्द्रमालाई आचार्य तुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३१७