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ज्योतिष ग्रन्थ और तिरुनु अन्धादि स्तोत्र ग्रन्थ प्रसिद्ध है। तिरूपकलम्बकम् जिनेन्द्र भगवानकी भक्ति और प्रशंसामें लिया गया है। इन प्रधान रचनाओंके अतिरिक्त संस्कृत और तमिल मिश्रित पद्योंमें मणिप्रवाल शैलीमें निर्मित श्रो पुराण, पदार्थसार, अष्टपदार्थ जीवसम्बोधन आदि प्रधान है।
पच्चइयप्पाकॉलेज कांचीपुरम्के प्रोफेसर श्री सी० एस० श्री निवासाचारी एम० ए० ने लिखा है
"प्राचीन तमिल और कर्नाटक प्रांतोंमें तमिल और कन्नड़ साहित्यको अभिवृद्धिमें जैनविद्वानोंका महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। उनके द्वारा लिखित एवं संग्रहीतकोष, व्याकरण एवं अन्य विषयोंपर अपरिमित सर्वाधिक मूल्यवान एवं उच्चकोटिके ग्रन्य हैं। वर्तमान में केवल उनका कुछ अंश ही शेष हैं, किन्तु जितना भी शेष है वह अपनी श्रेणीका अद्भुत, अत्यधिक संतोषप्रद है और वह शताब्दियों तक तमिल भाषाके क्रमिक विकासका आधारभूत तत्व रहा है ।
इस प्रकार जैन कवियोंने तमिल साहित्यकी श्रीवृद्धिमें अमूल्य सहयोग प्रदान किया है।
मराठी जैन कवि मराठी भाषामें भी जैनकवियोंने प्रभूत साहित्यकी रचना की है। मराठी भाषामें श्रवणबेलगोलाके गोम्मटेश्वरकी मूर्तिके नीचे शक संवत् ८८३ का छोटासा अभिलेख खुदा है, पर शक संवत् १४०० तक मराठी ग्रन्थकर्ताओंका नामोल्लेख प्राप्त नहीं होता है । जैनकवियों की रचनाएँ ई० सन्की १७ वीं शतीसे प्रचुररूपमें मिलने लगती हैं | मराठी भाषामें लिखित जेनसाहित्यका अल्पांश ही उपलब्ध हो सका है। अभीतक बहुत-सा साहित्य अप्रकाशित पड़ा है। हम यहाँ मराठीके प्रमुख कवि और लेखकोंका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करेंगे।
जिनदास मराठी साहित्यका सबसे पहला शात कवि जिनदास है । इनके गुरुका नाम भट्टारक भुवनकोति था। भुवनकोतिका समय शक संवत् १६४३ से १६६२ तक है । अतएव जिनदासका समय शक संवत्की १७ बीं शती है। इन्होंने हरिवंशपुराण नामक ग्रन्थको रचना देवगिरि (मराठवाड़ा) नामक स्थानमें की है। १. श्री सी. एस. मलनायन, तमिल भाषाका जनसाहित्म, प्रकाशक श्री दि० जैन
अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी, महावीर पार्क रोड, जयपुर, पृ० २१ । ३१८ : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य-परम्परा