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________________ आँखें खोल दों और उसे अपनी मूर्खताका आभास होने लगा। उसे अपनो सतो-साध्वी पत्नीका ध्यान आया और घर लौट आया। कण्णकोने अपने निर्धन पसिको बहुत सांत्वना दी और कहा-'ये मेरे सोनेके नुपूर हैं, तुम इन्हें बेच सकते हो और इनसे जो धन प्राप्त हो, उससे व्यवसाय कर अपनी आर्थिक स्थितिको सुदृढ़ बना सकते हो । कोवलन और उसकी पत्नी कण्णकी प्रच्छन्न रूपसे नगर त्यागकर आर्यिका कम्बुदोके मार्गदर्शनमें मदुरा पहुंच गये । आर्यिका कम्बुदोने कोवलन और उसकी स्त्रो कण्णकीको एक ग्वालिनके संरक्षण में छोड़ दिया ।" प्रातःकाल हानेपर कोवलन अपनी स्त्रीका नुपूर लेकर नगरीकी ओर रवाना हुआ। मार्गमें उसे एक सुनार मिला, जो राजमहलोंमें नौकर था। उसने वह नुपूर उसे दिखलाया और पूछा क्या आप इसे उचित मूल्यमें बिकवा सकते हैं ? सुनार धूर्त था, उसने पहले ही रानीका एक नुपूर चुरा लिया था। उसे यह आशंका थी कि कहीं राज्याधिकारी मुझे बन्दी न बना लें। अतः वह कोवलनको देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बोला--"आप कृपया यहाँ प्रतीक्षा कीजिये। मैं एक अच्छा ग्राहक लेकर आता हूँ।" सुनार सीधा महलोंमें गया और राजाका सूचित किया-"मैंने रानोके नुपुरको चुराकर ले जानेवालेका पता लगा लिया है और नुपूर उसके पास है । राजाने सैनिकोंको आदेश दिया कि चोरको मार डालो और रानोका नुपूर ले आओ । सैनिक धूर्त सुनारके साथ कोलनके पास पहुंचे और उसे प्रहार कर मार डाला । इधर कण्णकी व्यग्रतापूर्वक अपने पतिके आगमनकी बाट जोह रही थी। उसके हृदयमें विचित्र अनुभूति हो रही थी। दिन ढलता जा रहा था और कोवलन लोटा नहीं। वह उद्विग्न होने लगी। उसने लोगोंसे सुना-"कावरीपूमपट्टिनमसे जो आदमी आया था वह बाजारमें मार डाला गया ।" वह सुनते ही बाजारकी तरफ झपटी । वहाँ उसने अपने प्रिय पतिको मृत पाया । उसने लोगोंको यह कहते हुए सुना कि यह परदेशी राजाज्ञासे मारा गया है। वह राजभवनकी ओर दौड़ी गयी और उसने राजाके दर्शन करनेकी अनुमति मांगी, जो तत्काल स्वीकृत हो गयी। उसने राजासे कहा कि आपने मेरे पत्तिको मार कर बड़ा अन्याय किया है। राजाके सामने ही उसने प्रमाणित कर दिया कि उसका पति चार नहीं था और उसके पास जा नुपूर था, वह रानीका नहीं बल्कि उसका था। राजाने दोनों नुपूरोंको तुड़वाया और देखा कि रानीके नुपूरमें मोती भरे हुए हैं, जबकि कपणकीके नुपूरमें रत्न । इस घटनासे राजाको बड़ा धक्का लगा और वह सिंहासनसे गिरकर मर गया । कण्णको उत्तेजित होकर आचार्यतुल्य काव्यकार एवं लेखक : ३१५
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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