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________________ इसकाध्यका नायक जांचक है। इसका पिताका नाम सत्यसन्ध है । सत्यसन्धने अपना राज्य कट्रियगारन नामक मंत्रीको सौंप कुछ दिनों के लिए विश्राम ले लिया । अवसर प्रासकर कट्टीयगरिनने सेनाको अपने अधीन कर राज्य हड़प लिया । सत्यसन्धकी पत्नी विजयाने एक मयूर उड़नखटोलेपर चढ़कर अपनी रक्षाकी और श्मशान भूमिमें पुत्रको जन्म दिया । कन्दूकड़न नामक व्यक्ति ने उस पुत्रको ले जाकर उसका नाम जोवकन् रक्खा और उसका पालन-पोषण करने लगा। जीवकन्ने विद्याध्ययन और युद्धकलामें शोघ्न हो निष्णात होकर राजा होने के योग्य अर्हताओंको प्राप्त किया । जीवकन्ने अपनी योग्यता प्रदर्शित कर पथक-पथक समयमें ८ कन्याओंसे विवाह किया। उसने वंचक कट्रियमारनको जीतकर अपने पिताके खोये हुए राज्यको पुनः हस्तगत किया। उसने बहुत दिनों तक सांसारिक सुख भोगते हुए राज्य शासन चलाया और अन्तमें संन्यास ग्रहण कर मोक्ष प्राप्त किया। इस काव्यमें विचारोंकी महत्ता साहित्यिक मुहावरोंके सुन्दर प्रयोग और प्रकृतिके सजीव चित्रण विद्यमान हैं। उत्तरवर्ती कवियोंने इस ग्रन्थका पूरा अनुसरण किया है। इस काव्यम १३ अध्याय और ३१४५ पद्य हैं। निस्सन्देह वर्णन शैलाके गाम्भीर्य और सशक्त अभिव्यञ्जनाके कारण यह काव्य महाकाव्यको श्रेणो में परिगणित है । इलंगोवडिगल 'शिल्प्पट्टिकार' काव्यको रचना प्रथम शताब्दीमें होनेवाले चेर राजा सिंगुटुबनके भाई इलंगोद्धिगलने की है । शिल्प्पड्डिकार शब्द का अर्थ 'नुपूरका महाकाव्य' है । इस ग्रन्थका यह नामकरण इस महाकाव्यकी नायिका कण्णको के नुपूरके कारण हुआ है । काव्यका कथावस्तु निम्नप्रकार है___ नायक कोवलन चोल साम्राज्यकी राजधानी कावेरी पूमपट्टिन के एक जैन वणिकका पुत्र है। उसका विवाह कण्णकी नामकी एक अन्य धनाढप सेठकी कन्यासे हुआ है । कुछ दिन तक दम्पति प्रसन्नतापूर्वक एक विशाल अट्टालिकामें सुख भोगते हैं। कालान्तरमें कोवलन माधवी नामक एक नर्तकोके सौन्दर्यपर मुग्ध हो जाता है और उसके साथ रहने लगता है। नर्तकीकी प्रसन्नताके लिये वह अपनी अतुल धनराशि व्यय करता जाता है और अन्समें इतना निर्धन हो जाता है कि माधवोको देनेके लिये उसके पास कुछ भी शेष नहीं रह जाता। जब माधवीको यह ज्ञात हुआ कि अब कोवलनके पास पन नहीं है, तो वह उसका तिरस्कार करने लगी। उसके इस व्यवहार परिवर्तनने कोवलनको ३१४ : तीर्थकर महाबीर और उनको आचार्य-परम्परा
SR No.090510
Book TitleTirthankar Mahavira aur Unki Acharya Parampara Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherShantisagar Chhani Granthamala
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size10 MB
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