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की भांति एक निश्चित नीतिके अनुसार किया गया है। इस ग्रन्थमें भी धर्म, अर्थ और कामका वर्णन आया है । इस प्रन्थपर भी पदुमनार द्वारा लिखित एक बड़ी ही सुन्दर जैन टीका है 1 'कुरल' और 'नालडियार' ये दोनों ही अन्य तमिल जनताके धर्मशास्त्र हैं।
तिरुतक्कतेवर इन्होंने 'जीवकचिन्तामणि' नामक महाकाव्यको रचना ई० सन्की ७वीं शतीमें की है। यह कवि जैनधर्मावलम्बी था। कहा जाता है कि यह घोल राजाको वंश परम्परामें हुआ है । कुछ विद्वान् इस काव्यको तमिल काव्योंका पिता मानते हैं । डॉ० जी० यू० पोपके शब्दों में--
"This is on the whole the greatest existing Tamil literary mommcnt. The great romantic cpic which is at once the iliad and the Odyssey of the Tamil language, is one of the great cpics of the world." __ अर्थात् यह काव्य वर्तमान तमिल साहित्यका एक महान स्मारक है । यह अद्भुत महाकाव्य तमिलभाषाका एलियर और ओडेसी कहा जा सकता है। यह संसारके महान् काव्यों में से एक है। इसकी रचनाके सम्बन्धमें एक आख्यान प्रचलित है । एक दिन किसीने तिरुतक्कतेवरको लक्ष्यकर कहा-"महाराज ! श्रमणोंको इस संसारके देखनेसे घृणा हो गयी । वे केवल वैराग्यपूर्ण संन्यासी जीवनकी ही प्रशंसा गाते हैं । सांसारिक सुखोंको रुचिकर ढंगसे वर्णन करनेका सामथ्यं श्रमणोंमें दिखलायी नहीं देता।" तिस्तक्कतेवरने उत्तर दिया"तुम्हारा कथन सारहीन है । सांसारिक आनन्दोंको वर्णन करनेके सामथ्यंका अभाव श्रमणोंमें नहीं है। किन्तु कुछ दिन रहनेवाले अनेक रोगोंसे प्रस्त तथा अल्पज्ञानसे युक्त इस जीवनको व्यर्थ किये बिना लोग मुनिमार्ग द्वारा हित सम्पन्न करें, इसी उद्देश्यसे श्रमणोंने मुनिधर्मकी प्रशंसा की है। सांसारिक आनन्दोंका वर्णन भी काव्यमें सहज सम्भाव्य है। में इसके लिए प्रयास करूंगा।"
तदनन्तर तिरुक्कतेवर अपने आचार्यके पास पहुंचकर जीवन भोगोंका वर्णन करनेवाले काव्यका सृजन करनेके लिये प्रार्थना करने लगा 1 गुरुने 'नरीविस्त्सम' एक प्राचीन कथा देकर काव्यरचना करनेका आदेश दिया । तिरुतक्कतेवरने इस नीरस कथाको मनोरंजक काव्यका रूप देकर प्रस्तुत किया, जिससे आचार्य बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने आशीर्वाद देकर 'जीवक. चिन्तामणि' काव्य लिखनेका आदेश दिया।
वाचार्यसुल्य काम्यकार एवं लेखक : ३१३