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बड़कर है। यह ग्रन्थ आज भी कन्नइ प्रान्तमें लोगोंका कण्ठहार बना हुआ है । तुलसीदासके 'रामचरितमानस के समान इसके भी दो चार पद निरक्षर भट्टाचार्योको याद हैं। संगीतको दृष्ट्रिसे इस ग्रन्थका अत्यधिक महत्त्व है । इस ग्रन्थका रचनाकाल ई० सन् १९५१ है । महाकाव्य और गीतिकाव्यका आनन्द इस एक हो ग्रन्थसे लिया जा सकता है।
मंगरस मंगरसका गोतिकाव्य और प्रबन्धकाव्य निर्माताओंमें महत्वपूर्ण स्थान है । इनका समय ई० सन् १५०८ है । कविने 'नेमिजिनेश्वर संगोत' और 'सम्यक्त्वकौमुदी' ग्रन्थोंकी रचना की है। नेमिजिनेश्वर संगीतमें संगीतकी अपूर्व छटा उपलब्ध होती है । सभी राग रागनियां उनके चरणोंपर लोटती हैं ।
नागवर्म इनका समय ९९० ई० है । इन्होंने छन्दोम्बुधि नामक छन्दशास्त्रको रचना को है। यह ग्रन्थ संस्कृत के पिंगलछन्दशास्त्रके आधारपर लिखा गया है। आनुपूर्वी और वृत्तके नामोंमें पिंगलकी अपेक्षा इसमें पर्याप्त अन्तर है । इसमें छह सन्धियाँ हैं। कन्नड़के मात्रिक छन्द और संस्कृतके छन्दोंका सुन्दर विवेचन किया है।
द्वितीय नामवर्माने ११४५ ई० के लगभग 'वस्तूकोश' नामक एक ग्रन्थ लिखा है। इसमें संस्कृत पदोंका अर्थ कन्नड़ पदोंमें बताया गया है। रीतिपर भो नागवाने प्रकाश डाला है और इसे काव्यके लिए आवश्यक धर्म माना है। अलंकारके अभावमें भी रीतिके रहने से माधुर्य और सौन्दर्य संघटित होते हैं। इन नागवर्माका 'काव्यालोचन' नामक लक्षण ग्रन्थ भी है । नागवर्मने कर्नाटक भाषाभूषण लिखकर कन्नड़के व्याकरणका भी परिचय दिया है। इस ग्रन्थमें संज्ञा, सन्धि, विभक्ति, कारक, शब्दरीति, समास, तद्धित, आख्यात नियम, अन्वय निरूपण और निपात निरूपण ये दश परिच्छेद हैं । कुल मिलाकर २८० सूत्र हैं।
केशवराज व्याकरण ग्रन्थ के निर्माताओंमें केशवराजका भी महत्वपूर्ण स्थान है । इनका समय ११५० ई० है। इन्होंने 'शब्द मणिदर्पण' नामक ब्याकरण ग्रन्थ लिखा है । इसमें कन्धरूपसे सुत्र लिखे गये हैं। व्याकरण नियमोंके स्पष्टीकरणके लिए उदाहरण प्राचीन कवियोंके गद्य-पद्य ग्रन्थोंसे लिये गये हैं । ३१० : तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा